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झारखंड में मृत्यु के चिकित्सीय प्रमाणीकरण की दर में उल्लेखनीय सुधार, पांच वर्षों में दोगुनी हुई प्रगति

 

जन्म एवं मृत्यु निबंधन अधिनियम, 1979 के तहत मृत्यु के कारणों का चिकित्सीय प्रमाणीकरण (Medical Certification of Cause of Death - MCCD) अनिवार्य है। इस व्यवस्था का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु का वास्तविक कारण दर्ज किया जाए, ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों, बीमा दावों और सांख्यिकीय विश्लेषण में पारदर्शिता और सटीकता बनी रहे।

इस दिशा में झारखंड ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। भले ही यह राज्य अब भी कई विकसित राज्यों की तुलना में पीछे है, लेकिन पिछले पांच वर्षों में मृत्यु प्रमाणीकरण की दर में दोगुनी वृद्धि दर्ज की गई है, जो एक सकारात्मक संकेत है।

अस्पतालों में अनिवार्य है प्रमाणित मृत्यु कारण

अधिनियम के अनुसार, अस्पतालों, क्लीनिकों और स्वास्थ्य संस्थानों में होने वाली हर मृत्यु का प्रमाणित चिकित्सीय कारण दर्ज करना अनिवार्य है। इससे न केवल परिवार को मृत व्यक्ति की सही बीमारी की जानकारी मिलती है, बल्कि सरकार को भी यह समझने में मदद मिलती है कि किन बीमारियों से सबसे ज्यादा मौतें हो रही हैं और किस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने की जरूरत है।

झारखंड में धीरे-धीरे बढ़ रही जागरूकता

राज्य स्वास्थ्य विभाग और रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (RGI) की संयुक्त पहल के तहत जागरूकता अभियान, अस्पतालों में प्रशिक्षण, डेटा मॉनिटरिंग और स्वास्थ्य कर्मियों की जवाबदेही तय करने जैसे उपायों के कारण झारखंड में मृत्यु प्रमाणीकरण की दर में बढ़ोतरी हुई है।

एक समय ऐसा था जब अधिकतर मौतों का कोई मेडिकल सर्टिफिकेट नहीं बनता था और ग्रामीण क्षेत्रों में इसे सामान्य प्रक्रिया मानकर अनदेखा कर दिया जाता था। लेकिन अब शहरी और अर्ध-शहरी अस्पतालों में मृत्यु प्रमाणन की प्रक्रिया को बेहतर रूप से लागू किया जा रहा है।

स्वास्थ्य नीति निर्माण में अहम भूमिका

मेडिकल सर्टिफिकेशन के आंकड़े जनस्वास्थ्य योजनाओं की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इससे यह समझा जा सकता है कि किन बीमारियों से सबसे अधिक मृत्यु हो रही है — जैसे हृदय रोग, कैंसर, संक्रमण, या अन्य स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं। इस जानकारी के आधार पर सरकार रोग नियंत्रण कार्यक्रम, टीकाकरण अभियान और स्वास्थ्य बजट आवंटन को सटीक दिशा में ले जा सकती है।

आगे की राह

झारखंड में अभी भी ग्रामीण इलाकों और घर पर होने वाली मौतों के प्रमाणन में कई चुनौतियाँ हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए आशा कार्यकर्ताओं, ग्राम स्तर के स्वास्थ्य कर्मियों और पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित करना जरूरी है। साथ ही, परिवारों को भी यह समझाना आवश्यक है कि मृत्यु प्रमाणन केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली की बुनियाद है।