झारखंड के दिशोम गुरु शिबू सोरेन नहीं रहे, अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब
झारखंड की आत्मा, संघर्ष की आवाज और आदिवासी अस्मिता के प्रतीक दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके निधन से न सिर्फ झारखंड, बल्कि पूरे देश में गहरा शोक फैल गया है।
आज उनका पार्थिव शरीर झारखंड विधानसभा परिसर लाया गया, जहां राज्यपाल, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और हजारों की संख्या में आम लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
अंतिम संस्कार नेमरा गांव में
दिशोम गुरु का अंतिम संस्कार आज दोपहर 3 बजे रामगढ़ जिले के उनके पैतृक गांव नेमरा में राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
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अंतिम संस्कार की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
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सेना और पुलिस की टुकड़ी राजकीय सम्मान की सलामी देगी।
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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत कई शीर्ष नेता अंतिम संस्कार में उपस्थित रहेंगे।
श्रद्धांजलि सभा में उमड़ा जनसैलाब
झारखंड विधानसभा परिसर में जब दिशोम गुरु का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ लाया गया, तो पूरा माहौल ग़मगीन हो गया।
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राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन ने पुष्पचक्र अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नम आंखों से अपने पिता को अंतिम विदाई दी और कहा,
"आप झारखंड के लिए सिर्फ नेता नहीं, एक आंदोलन थे, एक विचारधारा थे।"
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विपक्ष के नेता और अन्य दलों के नेता भी इस मौके पर भावुक नजर आए।
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सैकड़ों कार्यकर्ता और आमजन भी परिसर के बाहर एकत्र होकर “दिशोम गुरु अमर रहें” के नारे लगा रहे थे।
संघर्ष की मिसाल थे शिबू सोरेन
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शिबू सोरेन को आदिवासी आंदोलन की सबसे बुलंद आवाज माना जाता था।
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उन्होंने झारखंड राज्य निर्माण के लिए लंबा आंदोलन किया और अंततः 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ।
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तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे, केंद्रीय कोयला मंत्री पद भी संभाला।
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उनका जीवन गरीबी, अन्याय और शोषण के खिलाफ एक जंग की तरह था।
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उन्हें 'झारखंड के गांधी' और 'लेडी टार्जन' जैसी उपाधियों से याद किया जाता है।
राज्य में शोक की लहर
दिशोम गुरु के निधन के बाद झारखंड सरकार ने राज्य में दो दिन का राजकीय शोक घोषित किया है।
सभी सरकारी दफ्तरों और शिक्षण संस्थानों में आज राष्ट्रीय ध्वज अर्धनमित रहेगा।