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झारखंड आंदोलन के पुरोधा शिबू सोरेन 'गुरुजी' के निधन से शोक की लहर, पूरे राज्य में छाया मातम

 

झारखंड राज्य के निर्माण की लंबी लड़ाई के अगुआ और झारखंड आंदोलन के प्रतीक पुरुष शिबू सोरेन ‘गुरुजी’ के निधन की खबर ने पूरे राज्य को शोक में डुबो दिया है। उनके निधन से न केवल झारखंड की राजनीतिक और सामाजिक दुनिया को गहरा धक्का पहुंचा है, बल्कि वे तमाम लोग भावुक हैं, जिन्होंने गुरुजी के संघर्षों को नजदीक से देखा और महसूस किया।

संघर्षों से भरा जीवन और जनआंदोलन की मिसाल
शिबू सोरेन का जीवन हमेशा से संघर्षों और जनसेवा की मिसाल रहा। वे उन नेताओं में गिने जाते हैं जिन्होंने जमीन से जुड़कर राजनीति की शुरुआत की और आदिवासी समाज के हक, अधिकार और पहचान के लिए दशकों तक लड़ाई लड़ी। झारखंड को बिहार से अलग राज्य के रूप में स्थापित कराने के आंदोलन में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा।

गुरुजी का जीवन आदिवासी अस्मिता, जंगल-जमीन की रक्षा और सामाजिक न्याय की लड़ाई में खपा रहा। उन्होंने न केवल राजनीतिक मंचों पर, बल्कि सड़कों पर उतरकर झारखंड की आवाज को बुलंद किया।

राज्य के हर कोने में फैला शोक
उनके निधन की खबर सामने आते ही पूरे झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई। राजधानी रांची से लेकर दुमका, बोकारो, गिरिडीह और साहिबगंज तक लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए जुटने लगे। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकर्ताओं में गहरा दुःख है। सड़कों पर जगह-जगह लोगों ने मोमबत्ती जलाकर और तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर उन्हें याद किया।

नेताओं और आमजन ने दी श्रद्धांजलि
झारखंड के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, पूर्व मुख्यमंत्री, सांसदों और विधायकों सहित तमाम नेताओं ने गुरुजी के निधन पर शोक जताया। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने भी उनके योगदान को याद करते हुए परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की।

झारखंड के निर्माण में अमिट योगदान
शिबू सोरेन को झारखंड आंदोलन का जननायक यूं ही नहीं कहा गया। वे वो शख्स थे जिन्होंने आदिवासियों की पीड़ा को न केवल समझा, बल्कि उसे मंच भी दिया। उनके नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने आंदोलन को राजनीतिक ताकत में बदला और अंततः 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ।

एक युग का अंत
गुरुजी के निधन के साथ ही झारखंड की राजनीति के एक युग का अंत हो गया है। उनके आदर्श, विचार और संघर्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।

राज्य सरकार ने उनके सम्मान में राजकीय शोक की घोषणा की है और अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। झारखंड की माटी ने आज अपने सबसे सच्चे सपूत को खो दिया है।