झारखंड में धार्मिक पर्यटन की अपार संभावनाएं, संस्कृति और अर्थव्यवस्था से जुड़ता विकास का गणित
धर्म, सभ्यता और संस्कृति केवल आस्था तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह किसी भी राज्य की अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास का अहम हिस्सा बनते हैं। खासकर झारखंड जैसे राज्य में, जहां प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक धरोहरें मौजूद हैं, वहां धार्मिक पर्यटन की अपार संभावनाएं दिखाई देती हैं।
धार्मिक धरोहर और पर्यटन
झारखंड को आदिकाल से ही धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता रहा है।
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देवघर का बाबा बैद्यनाथ धाम न सिर्फ झारखंड, बल्कि पूरे देश में शिव भक्तों का सबसे बड़ा तीर्थ है।
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परसनाथ पर्वत जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है, जहां हर साल हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं।
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इसी तरह अयोध्या पहाड़, इटखोरी, मल्यूटंगरी और रजरप्पा मंदिर जैसे स्थल झारखंड को धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से विशिष्ट पहचान दिलाते हैं।
स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि धार्मिक पर्यटन केवल श्रद्धा का विषय नहीं है, बल्कि यह स्थानीय लोगों के लिए आजीविका का बड़ा स्रोत भी है। मंदिरों और तीर्थ स्थलों पर आने वाले यात्रियों से आसपास के क्षेत्र में होटल, रेस्टोरेंट, परिवहन और स्थानीय हस्तशिल्प को बढ़ावा मिलता है। इससे हजारों लोगों को रोजगार मिलता है और राज्य की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलती है।
सरकार की भूमिका
राज्य सरकार धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है।
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तीर्थ स्थलों तक सड़क और परिवहन सुविधाओं को दुरुस्त किया जा रहा है।
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डिजिटल प्लेटफॉर्म पर टूरिज्म प्रमोशन के प्रयास बढ़ाए जा रहे हैं।
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पर्यटन नीति में धार्मिक स्थलों को प्राथमिकता देकर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर जोर दिया जा रहा है।
संस्कृति और पहचान का संरक्षण
धार्मिक पर्यटन केवल आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह झारखंड की सभ्यता और संस्कृति को भी संरक्षित करने का माध्यम बनता है। यहां की लोककला, नृत्य, संगीत और पारंपरिक मेलों को धार्मिक उत्सवों के साथ जोड़कर दुनिया तक पहुंचाया जा सकता है।