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Devghar पुनर्वास पर 22 साल से नहीं हो सका काम 7211 करोड़ में सिर्फ 2662 परिवार शिफ्ट

 
 झारखण्ड न्यूज़ डेस्क  17 साल बाद भी उसमें खास सफलता नहीं मिली है। यह बात खुद बीसीसीएल प्रबंधन ने नई दिल्ली में हुई 22 साल बाद भी पुनर्वास पर उम्मीद के मुताबिक काम नहीं हुआ। जिस उद्देश्य काे लेकर 2004 में जरेडा का गठन किया गया था,  हाईपावर कमेटी की बैठक में कोयला सचिव को बताई। साथ ही जरेडा को ज्यादा अधिकार देने, संसाधन की दरकार और राज्य सरकार से सार्थक पहल कराने का भी अनुरोध किया। बीसीसीएल ने पावर प्रजेंटेशन में बताया कि 2008 के मास्टर प्लान के आधार पर 54 हजार गैर रैयत परिवाराें काे बसाने की याेजना बनी थी, इनमें अब तक 2662 परिवराें काे ही बसाया जा सका है।

अप्रैल 2019 के सर्वे में 1.04 लाख रैयत और गैर रैयत परिवाराें काे बसाने की याेजना बनी है। इनमें 32 हजार रैयत और 72 हजार गैर रैयत परिवार हैं, जिनकाे पुनर्वासित करने के लिए बड़े स्तर पर जमीन की जरूरत है। जमीन उपलब्ध नहीं है। इतने साल बाद भी झरिया पुनर्वास याेजना सफल नहीं हाेने काे लेकर हाई पावर कमेटी द्वारा चिंता व्यक्त की गई। बैठक में एचपीसीसी के सदस्याें में एनडीएमए के अधिकारी केएस वत्स, डीओएलआर के सह सचिव हुकुम सिंह मीणा, आईआईटी आईएसएम के प्राेफेसर आरएम भट्टाचार्या माैजूद थे। बीसीसीएल सीएमडी पीएम प्रसाद बैठक में ऑनलाइन जुड़े थे।


जेआरडीए काे लीगल पावर नहीं मिलना झरिया पुनर्वास याेजना की असफलता का बड़ा कारण जेआरडीए का लीगल बाॅडी नहीं हाेना है। सीएमडी पीएम प्रसाद का कहना है कि जेआरडीओ काे हर चीज के लिए जिला प्रशासन पर निर्भर रहना पड़ता है। बीसीसीएल की काेई सुनेगा नहीं। जेआरडीए काे वैधानिक अधिकार देने का मामला हाई पावर कमेटी की बैठक में उठाया गया।

जमीन मिली नहीं, विस्थापित बढ़ते गए दूसरा बड़ा कारण हर मास्टर प्लान में रैयताें की संख्या बढ़ना है। 2004 में 27 हजार, 2008 में 54 हजार गैर रैयत परिवार तथा अप्रैल 2019 में कराए गए सर्वे में 1.04 लाख परिवाराें काे पुनर्वास के लिए चिह्नित किया गया। केंद्र सरकार के निर्देश के तहत स्मार्ट सिटी की तर्ज पर बसाने के लिए 10 हजार एकड़ जमीन चाहिए जाे बीसीसीएल और जेआरडीए के पास नहीं है।

न आग पर काबू, न हुआ पुनर्वास 2008 में संशाेधित मास्टर प्लान 7211 कराेड़ का भारी-भरकम बजट बना। इनमें 3700 कराेड़ रुपए जेआरडीए और बाकी राशि बीसीसीएल काे खर्च करनी थी। इसमें बीसीसीएल काे झरिया और आसपास के क्षेत्राें में आग पर काबू पाने तथा अग्निप्रभावित क्षेत्र में बीसीसीएल परिवाराें काे शिफ्टिंग करनी थी। वहीं जेआरडीए काे 54 हजार गैर रैयत परिवाराें काे बसाने की याेजना थी, लेकिन इतने वर्षाें में 3 हजार परिवाराें काे भी नहीं बसाया जा सका।

रैयतों के सर्वे में ही लगे 12 साल 2008 काे संशाेधित मास्टर प्लान में याेजना बनी कि अग्नि व भूधंसान प्रभावित क्षेत्राें में रैयत परिवाराें काे भी बसाया जाए। इसकाे लेकर बीसीसीएल के 595 प्वाइंट्स में सर्वे की याेजना बनी। 2009 से सर्वे का काम शुरू हुआ। आइएसएम, सिंफर के बाद जिला प्रशासन ने प्राइवेट एजेंसी रखकर जेआरडीए और बीसीसीएल के माध्यम से सर्वे का निर्णय लिया। इसमें 1 लाख 4 हजार रैयत और गैर रैयत परिवाराें काे बसाने की याेजना बनी।