झारखंड में बाघों का संकट, 277.70 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद केवल एक बाघ बचा
झारखंड में बाघों के संरक्षण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने भारी निवेश किया है, लेकिन इसके बावजूद बाघों की संख्या में निराशाजनक गिरावट आई है। अब राज्य में केवल एक बाघ बचा हुआ है। 277.70 करोड़ रुपये की बड़ी राशि खर्च करने के बावजूद बाघों की संरक्षण योजनाएं विफल रही हैं।
झारखंड सरकार ने बाघों की संख्या बढ़ाने और उनके पर्यावरणीय संरक्षण के लिए पिछले कुछ वर्षों में कई कदम उठाए थे। इन प्रयासों के तहत जंगलों के विस्तार, बाघ अभयारण्यों की सुरक्षा और बाघों के प्राकृतिक आवास की स्थिति में सुधार के लिए भारी बजट आवंटित किया गया। बावजूद इसके, राज्य में बाघों की संख्या में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हो पाई।
विशेषज्ञों का मानना है कि मानव और वन्यजीव संघर्ष, अवैध शिकार, और जंगलों की अतिक्रमण जैसे कारणों ने बाघों की संख्या में गिरावट को बढ़ावा दिया है। इसके साथ ही, बाघों के लिए उचित खानपान और आवास की कमी भी इस संकट का कारण बन रही है।
झारखंड में बाघों के संरक्षण के लिए अब एक सशक्त रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें आधुनिक निगरानी उपकरण, वन्यजीव रेंजर्स का अधिकतम योगदान और स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग को बढ़ावा दिया जाए। राज्य के पर्यावरण मंत्रालय को इस दिशा में गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि बाघों की संख्या को संरक्षित किया जा सके और भविष्य में उनके अस्तित्व को बचाया जा सके।