झारखंड सरकार के स्वास्थ्य मॉडल को असम ने भी अपनाया, शव रोके जाने की अमानवीय प्रथा पर लगा पूर्ण विराम
झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा लागू किया गया एक प्रगतिशील और मानवीय मॉडल अब देश के अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बनता जा रहा है। इसी क्रम में असम सरकार ने झारखंड के इस सफल मॉडल को अपनाने का निर्णय लिया है, जिसके तहत मरीज की मृत्यु के बाद अस्पताल द्वारा बकाया राशि के बहाने शव रोकने की प्रथा पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी गई है।
यह कदम न केवल मानव गरिमा की रक्षा करता है, बल्कि अस्पतालों और मरीजों के परिजनों के बीच संवेदनशील और भरोसेमंद संबंध भी स्थापित करता है। झारखंड में इस नीति के लागू होने के बाद कई ऐसे मामले सामने आए जहां आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को तुरंत उनके परिजन का शव सौंपा गया और बाद में औपचारिकताओं को पूरा किया गया।
क्या है यह मॉडल?
इस मॉडल के तहत राज्य सरकार ने सभी सरकारी और निजी अस्पतालों को यह निर्देश जारी किया है कि यदि किसी मरीज की मृत्यु हो जाती है, तो अस्पताल कोई भी बकाया शुल्क या बिल की वसूली को शव सौंपने की शर्त नहीं बना सकता।
स्वास्थ्य विभाग ने स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में पहले शव को परिजनों को सौंपा जाए और बाद में बिल भुगतान के लिए अन्य वैधानिक तरीकों को अपनाया जाए। इसके लिए अस्पतालों को एक मानवता आधारित संचालन प्रक्रिया (SOP) के तहत काम करना होता है।
झारखंड में सफल क्रियान्वयन के बाद असम ने दिखाया विश्वास
असम सरकार ने झारखंड में इस नीति के सफल क्रियान्वयन को देखते हुए इसे अपने यहां भी लागू करने का फैसला किया है। असम के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, "झारखंड का मॉडल न केवल व्यवहारिक है, बल्कि यह गरीबों और वंचितों के लिए संवेदनशील शासन की मिसाल भी है। हम इसे असम के अस्पतालों में जल्द लागू करेंगे।"
मानवता की ओर एक मजबूत कदम
स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों ने इस कदम की सराहना की है। उनका मानना है कि यह नीति अस्पतालों को केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण से हटाकर सेवा भाव की ओर प्रेरित करती है। कई बार अस्पतालों में शव को घंटों या दिनों तक रोके जाने की घटनाएं सामने आती रही हैं, जो कि मृत व्यक्ति के परिजनों के लिए बेहद पीड़ादायक होती थीं।
अन्य राज्यों के लिए बनेगा उदाहरण
झारखंड सरकार के इस मॉडल को अब राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिल रही है और यह अन्य राज्यों के लिए एक रोल मॉडल के रूप में उभर रहा है। माना जा रहा है कि आने वाले समय में कई अन्य राज्य भी इस मानवीय नीति को लागू करने की दिशा में कदम उठाएंगे।
झारखंड और अब असम द्वारा उठाया गया यह कदम साबित करता है कि शासन व्यवस्था जब संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों पर आधारित होती है, तब उसका असर आम लोगों के जीवन पर गहराई से पड़ता है।
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