पहलगाम की घाटियों में तंबू के भीतर लेटे थे आतंकी, जानिए कैसे खानाबदोशों की सतर्कता और थर्मल ड्रोन की नजर ने बना दी कब्रगाह ?
पहलगाम आतंकी हमले के दोषियों को खत्म करने में सुरक्षा बलों को तीन महीने से ज़्यादा का समय लगा। ऐसा इसलिए क्योंकि लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के एक प्रमुख आतंकवादी संगठन, द रेजिस्टेंस फोर्स (TRF) के आतंकवादियों को लंबे समय तक छिपे रहने का प्रशिक्षण दिया गया था। सुरक्षा बल 22 अप्रैल को हमले के दिन से ही उनकी तलाश में थे। लेकिन, उनके चीनी संचार उपकरणों से 17 दिनों में दो बार मिले संकेतों ने सुरक्षा बलों के लिए उन तक पहुँचना आसान बना दिया। आखिरकार, सोमवार, 28 अप्रैल को श्रीनगर के पास वन क्षेत्र में सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक संयुक्त अभियान में उन्हें मार गिराया गया। खानाबदोशों से मिली जानकारी ने उन्हें जहन्नुम पहुँचाने में काफ़ी मदद की।
17 दिनों में दो बार मिले संकेत और आतंकवादियों को घेर लिया गया
शनिवार, 26 जुलाई को, सुरक्षा बलों ने पिछले 17 दिनों में दूसरी बार उनके संचार उपकरणों से मिले संकेतों को ट्रैक किया। इससे उन्हें श्रीनगर के बाहरी इलाके दाचीगाम के जंगलों में मुलनार के मैदानों में महादेव चोटी के पास लिडवास में जाल बिछाने का मौका मिला। यह इलाका रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। इन आतंकियों से बरामद भारी मात्रा में हथियारों और गोला-बारूद में चीनी संचार उपकरण बेहद अहम हैं।
शनिवार को दाचीगाम के जंगलों में मिला सिग्नल
उच्चस्तरीय सूत्रों के अनुसार, इन आतंकियों ने इससे पहले 11 जुलाई को पहलगाम के उसी बैसरन घाटी इलाके में यह डिवाइस चालू किया था, जहाँ उन्होंने 22 अप्रैल को 25 पर्यटकों और एक स्थानीय नागरिक का कत्लेआम किया था। इसके बाद ही सुरक्षा बलों ने दिन-रात उनकी तलाश की और लगातार उनके बदलते ठिकानों पर नज़र रखनी शुरू कर दी। सुरक्षा बलों के दबाव के चलते ये आतंकी लगातार अपना ठिकाना बदल रहे थे। शनिवार को महादेव चोटी इलाके में उनके सैटेलाइट फोन का सिग्नल पकड़ा गया। इसके बाद सुरक्षा बलों ने तुरंत अंतिम ऑपरेशन शुरू किया, जिसे बाद में 'ऑपरेशन महादेव' के नाम से जाना गया। यह सिग्नल दाचीगाम के जंगलों से मिला था, जहाँ से सबसे नज़दीकी रिहायशी इलाका लगभग 30 किलोमीटर दूर चक दारा में है।
'थर्मल ड्रोन' ने की आतंकियों की पुष्टि
अनंतनाग ज़िले की बैसरन घाटी श्रीनगर के दाचीगाम जंगलों से सड़क मार्ग से लगभग 120 किलोमीटर दूर है। लेकिन, जंगल के रास्ते यह दूरी सिर्फ़ 40-50 किलोमीटर है, जिसके बीच में अरु वन्यजीव अभयारण्य भी पड़ता है। ये आतंकी इतने दिनों में जंगल के रास्ते यहाँ पहुँचे। सूत्रों का कहना है कि जब यह अनुमान लगाया गया कि तीन आतंकी उस इलाके में छिपे हो सकते हैं, तो इसकी पुष्टि के लिए एक 'हीट सिग्नेचर ड्रोन' को इलाके के ऊपर मँडरा दिया गया। 'हीट सिग्नेचर ड्रोन' को 'थर्मल ड्रोन' भी कहा जाता है, जिसमें थर्मल कैमरे लगे होते हैं, जो इंफ्रारेड रेडिएशन के ज़रिए किसी वस्तु की गर्मी का पता लगाकर बता सकते हैं कि वह वस्तु क्या हो सकती है।
ऑपरेशन महादेव में खानाबदोशों ने की मदद
लेकिन, इस काम में खानाबदोशों द्वारा दी गई जानकारी सुरक्षा बलों और पुलिस के लिए सबसे ज़्यादा मददगार साबित हुई, जिन्होंने उन्हें वहाँ की गतिविधियों की चप्पे-चप्पे से अवगत कराया। इन खानाबदोशों ने कारगिल में पाकिस्तान की नापाक हरकतों का भी पर्दाफ़ाश किया था। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, खानाबदोशों से मिले इनपुट के आधार पर इलाके की इस तरह घेराबंदी की गई थी कि आतंकियों को भनक तक न लग सके। जानकारी के मुताबिक, लश्कर कमांडर सुलेमान, हमजा अफगानी और जिबरान सोमवार सुबह करीब 11.30 बजे एक अस्थायी टेंट में बेफिक्र होकर आराम कर रहे थे, तभी सुरक्षा बलों से उनकी मुठभेड़ हो गई और मुठभेड़ के बाद आखिरकार उन्हें मार गिराया गया। तीनों पाकिस्तानी नागरिक थे और सुलेमान को लश्कर ने अपने आतंकी मुख्यालय मुरीदके में ट्रेनिंग दी थी।