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आस्था, रोमांच और रहस्यों से भरी एक अद्भुत यात्रा

 

हिमाचल प्रदेश का किन्नौर जिला प्राकृतिक सौंदर्य, अध्यात्म और रहस्य से परिपूर्ण है। यहां स्थित किन्नौर-कैलाश पर्वत न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है, बल्कि यह यात्रा साहस और आत्मबल की भी कठोर परीक्षा लेती है। यह पंच कैलाशों में से एक है और इसकी यात्रा को सबसे दुर्गम यात्राओं में गिना जाता है।

किन्नौर-कैलाश यात्रा की शुरुआत तांगलिंग गांव से होती है, जो रिकांगपिओ से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यह स्थान 6,050 मीटर ऊंचे कैलाश शिखर की ओर बढ़ने का प्रवेश द्वार है। यात्रा के दौरान यात्री घने जंगलों, उफनती नदियों, बर्फीले ग्लेशियरों और बेहद पथरीले रास्तों से गुजरते हैं। यह सब एक ऐसे सफर का हिस्सा है, जिसमें कदम-कदम पर प्रकृति की कठोर परीक्षा और भक्ति की गहराई का अनुभव होता है।

रास्ते में पड़ने वाला पार्वती कुंड न केवल एक पवित्र जल स्रोत है, बल्कि यहां पहुंचकर यात्रियों को एक अद्भुत और रहस्यमयी अनुभव होता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस कुंड के पास रहस्यमयी अलौकिक ध्वनियां सुनाई देती हैं, जो मन को झकझोर देती हैं और आत्मा को एक गूढ़ शांति का अनुभव कराती हैं। यह ध्वनियां कौन उत्पन्न करता है, इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, लेकिन श्रद्धालु इसे ईश्वरीय संकेत मानते हैं।

सबसे रोमांचक और चुनौतीपूर्ण हिस्सा तब शुरू होता है, जब कैलाश पर्वत की चढ़ाई करनी होती है। पर्वत की अंतिम चढ़ाई लगभग 90 डिग्री के एंगल पर होती है, जहां पैर जमाना और संतुलन बनाए रखना किसी अजूबे से कम नहीं। हवा में ऑक्सीजन की कमी, ठंड और थकान इस चढ़ाई को और भी कठिन बना देती है। लेकिन यही कठिनाई उस आध्यात्मिक उपलब्धि का हिस्सा है, जिसके लिए श्रद्धालु यहां आते हैं।

किन्नौर कैलाश शिखर पर पहुंचने के बाद जो अनुभूति होती है, उसे शब्दों में बयान करना संभव नहीं। यहां शिवलिंग के आकार का विशालकाय पत्थर स्थित है, जिसे स्थानीय लोग भगवान शिव का प्रतीक मानते हैं। यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बना हुआ है और हर साल अपनी दिशा बदलता बताया जाता है।