आतंकियों के लिए जी का जंजाल था POTA कानून? जानें क्या है वो कानून जिसका जिक्र संसद में करके अमित शाह ने कांग्रेस को घेरा?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में चर्चा की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए पोटा कानून का ज़िक्र किया और कहा कि 2002 में अटल जी की एनडीए सरकार पोटा लेकर आई थी। तब पोटा पर किसको आपत्ति थी? 2004 में कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने के बाद सोनिया गांधी-मनमोहन सिंह सरकार ने पोटा कानून को ख़त्म कर दिया। कांग्रेस ने किसके फ़ायदे के लिए पोटा को ख़त्म किया। इतना ही नहीं, अमित शाह ने संसद में ज़िक्र किया कि हमने 2019 के बाद कई संगठनों पर प्रतिबंध लगाया है। गृह मंत्री ने जिस पोटा कानून 2002 की बात की, उसने अपने समय में काफ़ी सुर्खियाँ बटोरी थीं। आइए जानते हैं कि आखिर वो पोटा कानून क्या है, जिसका ज़िक्र करके अमित शाह लोकसभा में कांग्रेस पर भड़क गए। साथ ही, क्या आप जानते हैं कि यह कानून क्यों बनाया गया था और इसे लेकर इतना विवाद क्यों हुआ और बाद में इसे क्यों रद्द कर दिया गया?
पोटा कानून 2002 क्या है?
पोटा के बारे में जानने से पहले, यह जानना बेहद ज़रूरी है कि यह कानून क्यों लाया गया था। आपको बता दें कि पोटा, जिसका पूरा नाम आतंकवाद निरोधक अधिनियम, 2002 है, भारत में आतंकवाद से निपटने के लिए बनाया गया एक विशेष कानून था। 1999 में आईसी-814 अपहरण और 2001 में संसद भवन पर हुए आतंकवादी हमले के बाद, सरकार को एक सख्त कानून की ज़रूरत और बढ़ते आतंकवादी खतरों का एहसास हुआ। जिसके बाद इसे तत्कालीन एनडीए सरकार ने वर्ष 2002 में लागू किया ताकि आतंकवादी गतिविधियों पर सख्ती से अंकुश लगाया जा सके। इस अधिनियम के तहत किसी भी संदिग्ध को 180 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है। आतंकवादी संगठनों से संबंध होने के संदेह में गिरफ़्तार किया जा सकता है। अगर आतंकवाद के लिए धन इकट्ठा किया जा रहा हो, तो इसे भी आतंकवादी अधिनियम माना जा सकता है। फ़ोन टैपिंग, संपत्ति ज़ब्त करना और गवाहों की गोपनीयता जैसे विशेष अधिकार भी इस अधिनियम के अंतर्गत आते थे।
इसे क्यों रद्द किया गया?
पोटा के तहत कई बड़े आतंकवादी मामलों को निपटाया गया। इससे जाँच एजेंसियों को आतंकवादी संगठनों पर नकेल कसने और उनके नेटवर्क को तोड़ने में मदद मिली। लेकिन बाद में पोटा का दुरुपयोग एक बड़ा मुद्दा बन गया। कई मानवाधिकार संगठनों और राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया कि इस कानून का इस्तेमाल निर्दोष लोगों के खिलाफ किया गया। विवाद के चलते, 2004 में सत्ता में आने के बाद यूपीए सरकार ने पोटा कानून को निरस्त कर दिया।