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सुप्रीम कोर्ट ने बहाल किया पुराना प्रतीक चिह्न, कांच की दीवारें हटाने का निर्णय

 

सुप्रीम कोर्ट में बदलाव की एक मिसाल एक साल भी नहीं चली। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा भवन में लगाई गई शीशे की दीवार एक साल के भीतर ही हटा दी गई। इस पूरे खेल में देश के करदाताओं के 2.68 करोड़ रुपये खर्च हुए। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को भले ही 'समानता में प्रथम' माना जाता हो, लेकिन उनके प्रशासनिक फैसले कई बार न्यायिक फैसलों से भी ज़्यादा असर छोड़ते हैं। हर नए सीजेआई के साथ सुप्रीम कोर्ट के परिसर और कामकाज में कुछ नया ज़रूर जुड़ता है, लेकिन जब अगला सीजेआई उन्हीं फैसलों को पलट देता है, तो न सिर्फ़ संसाधनों की बर्बादी होती है, बल्कि न्यायपालिका की स्थिरता पर भी सवालिया निशान लग जाता है।

हाल ही में ऐसा ही एक मामला सामने आया जब सुप्रीम कोर्ट ने आधुनिकता के नाम पर लगाए गए शीशे के पैनल हटाने का आदेश जारी किया। वो भी सिर्फ़ एक साल के भीतर। नवंबर 2022 में अपना कार्यकाल शुरू करने वाले तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट परिसर को आधुनिक बनाने के लिए कई कदम उठाए थे। इनमें से एक था सुप्रीम कोर्ट की पहली पाँच अदालतों के बाहर ऐतिहासिक गलियारे में काँच की दीवारें लगाना। यह न केवल एक भौतिक परिवर्तन था, बल्कि एक प्रतीकात्मक परिवर्तन भी था।

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इन शीशों को लगाने के पीछे तर्क दिया था कि इससे केंद्रीकृत वातानुकूलन में मदद मिलेगी और परिसर अधिक आरामदायक बनेगा। लेकिन वकीलों के संगठन सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने इसका विरोध किया।

बार एसोसिएशनों ने आरोप लगाया कि काँच की दीवारों ने गलियारों की चौड़ाई काफी कम कर दी है, जिससे एक अदालत से दूसरी अदालत तक पहुँचना मुश्किल हो गया है और भीड़भाड़ की स्थिति पैदा हो गई है। सबसे बड़ी शिकायत यह थी कि यह निर्णय उन लोगों से परामर्श किए बिना लागू किया गया जो अदालत के दैनिक कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

पुरानी स्थिति बहाल...

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के सेवानिवृत्त होने के बाद, बार एसोसिएशनों ने उनके उत्तराधिकारी मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना से औपचारिक रूप से शीशे हटाने की माँग की। हालाँकि, खन्ना के कार्यकाल के दौरान कोई निर्णय नहीं लिया गया। लेकिन जैसे ही न्यायमूर्ति बीआर गवई ने देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभाला, उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि सर्वोच्च न्यायालय को उसके 'मूल स्वरूप' में वापस लाया जाएगा। जून 2025 में, पूर्ण न्यायालय ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि शीशे के पैनल हटा दिए जाएँ। कुछ ही दिनों में, इन शीशे की दीवारों को हटा दिया गया और गलियारे को उसके मूल खुले और ऐतिहासिक स्वरूप में वापस लाया गया।

इसकी लागत कितनी थी? आरटीआई में खुलासा

आज तक से अशोक कुमार उपाध्याय की आरटीआई से पता चला कि सर्वोच्च न्यायालय परिसर में इन शीशों को लगाने पर कुल ₹2,59,79,230 (लगभग 2.6 करोड़ रुपये) खर्च हुए। यह काम मेसर्स बीएम गुप्ता एंड संस को दिया गया, जिसका चयन सीपीडब्ल्यूडी की ई-टेंडर प्रणाली के माध्यम से किया गया था। साथ ही, जब इन शीशों को हटाने का निर्णय लिया गया, तो लागत ₹8,63,700 आई। इस तरह सिर्फ़ एक साल में कुल ₹2.68 करोड़ खर्च हुए। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने इस फ़ैसले को 'पूर्ण न्यायालय' का सामूहिक फ़ैसला बताया है।

लोगो बदलने का फ़ैसला भी पलटा

काँच की दीवारों को हटाना ही एकमात्र बदलाव नहीं था जिसे पलटा गया। मुख्य न्यायाधीश गवई ने सुप्रीम कोर्ट के लोगो को उसके पुराने स्वरूप में भी बहाल किया, जिसके बीच में भारत का राजचिह्न था। इस लोगो को सितंबर 2024 में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के कार्यकाल के दौरान बदला गया था।