गांधीजी के जन्मदिन के मौके पर जानें कहानी उस संत की, जिन्होंने गांधी जी को गिफ्ट किए थे 3 बंदर
गांधीजी के तीन बंदर जापान से आये थे
गांधी जी के तीन बंदरों की कहानी आज से लगभग 90 साल पहले शुरू हुई थी। यह बंदर जापान से आया था। जी हां, वह असली बंदर नहीं बल्कि बंदरों की एक मूर्ति थी, जो गांधीजी को उपहार में दी गई थी। जापान के प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु निचिदात्सु फ़ूजी ने गांधीजी को तीन बंदरों की मूर्तियाँ भेंट कीं।
निचिदात्सु फ़ूजी कौन थे?
जापान के एसो काल्डेरा के जंगलों में जन्मे निचिदात्सु फ़ूजी एक किसान परिवार से थे। 19 साल की उम्र में वह बौद्ध भिक्षु बन गये। 1917 में उन्होंने मिशनरी गतिविधियाँ शुरू कीं। हालाँकि, 1923 में जापान में एक भयानक भूकंप आया। ऐसे में निचिदात्सु फ़ूजी को जापान लौटना पड़ा। कुछ साल बाद उन्होंने भारत आने का फैसला किया.
निचिदात्सु फ़ूजी और गांधीजी की मुलाकात
1931 में निचिदात्सु फ़ूजी कलकत्ता पहुंचे और पूरे शहर का दौरा किया। अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी से मिलने का मन बनाया और वर्धा में गांधीजी के आश्रम पहुंच गये। आश्रम में निचिदात्सु फ़ूजी को देखकर गांधीजी भी बहुत प्रसन्न हुए। निचिदात्सु फ़ूजी ने भी आश्रम की प्रार्थनाओं में भाग लिया। महात्मा गांधी से अपनी पहली मुलाकात में उन्होंने गांधीजी को 3 बंदरों की मूर्तियाँ भी भेंट कीं। गांधी जी को यह बंदर इतना पसंद आया कि उन्होंने इस मूर्ति को अपनी मेज पर रख लिया। गांधीजी से मिलने आए हर शख्स की नजर मेज पर रखे बंदरों पर टिकी थी. जल्द ही यह मूर्ति 'गांधी जी के 3 बंदर' के नाम से मशहूर हो गई।
शांति पगोडा की स्थापना
निचिदात्सु फ़ूजी को शांति पगोडा की स्थापना के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने जापानी शहरों हिरोशिमा और नागासाकी में पहला शांति पैगोडा स्थापित किया। यह वही शहर था जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने परमाणु बम गिराए थे, जिसमें 1,50,000 से अधिक जापानी नागरिक मारे गए थे। इस आपदा से निचिदात्सु फ़ूजी को गहरा सदमा लगा। उन्होंने भारत जाने का फैसला कर लिया था.
निचिदात्सु फ़ूजी की मृत्यु
भारत आने के बाद उन्होंने बिहार के राजगीर में शांति पैगोडा भी बनवाया। इस स्थान पर एक जापानी मंदिर भी मौजूद है। जापानी शैली के इस मंदिर में भगवान बुद्ध की एक खूबसूरत सफेद मूर्ति भी मौजूद है। निचिदात्सु फ़ूजी की मृत्यु 9 जनवरी 1986 को हुई। हालाँकि, उनकी मृत्यु के बाद भी, शांति पगोडा का निर्माण जारी रहा। वर्ष 2000 तक यूरोप, एशिया और अमेरिका में 80 से अधिक शांति मंदिर स्थापित हो चुके थे।