क्या सच में जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य से ज्यादा सियासत, नड्डा के तेवर से लेकर बिहार चुनाव तक के समीकरण चर्चा में
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनका कार्यकाल अगस्त 2027 में समाप्त हो रहा था, लेकिन उन्होंने बीच में ही अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी। धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया, जबकि विपक्ष आरोप लगा रहा है कि उनका इस्तीफा लिया गया है। जब तक केंद्र सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आता, तब तक इस पर अटकलें जारी रहेंगी। इस बात पर भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि धनखड़ के इस्तीफे के कई घंटे बाद भी प्रधानमंत्री या किसी केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट तक नहीं किया। अटकलें इसलिए भी लगाई जा रही हैं क्योंकि उन्हें अपने रिटायरमेंट प्लान पर चर्चा किए 15 दिन भी नहीं हुए हैं। 10 जुलाई को जेएनयू में एक कार्यक्रम में उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि उपराष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने के बाद वह रिटायर हो जाएँगे। फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने बीच में ही अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी।
मोहन भागवत का बयान कोई मुद्दा नहीं
धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफे की बात इसलिए भी गले नहीं उतर रही क्योंकि करीब एक महीने पहले उत्तराखंड में एक कार्यक्रम में उनकी तबीयत बिगड़ गई थी। राजभवन में डॉक्टरों ने उनका इलाज किया और अगले दिन वह एक स्कूल कार्यक्रम में शामिल हुए थे। धनखड़ तब से लगातार सक्रिय थे और उनकी तबीयत बिगड़ने की कोई खबर नहीं आई। अगर इस्तीफ़े की वजह राजनीतिक है, तो क्या इसका संबंध आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के 75 साल की उम्र में संन्यास लेने वाले बयान से है? शायद नहीं, क्योंकि धनखड़ इसी साल मई में 74 साल के हो गए थे। उनसे पहले भाजपा के कुछ बड़े नेता 75 साल के हो जाएँगे, इसलिए धनखड़ के इस्तीफ़े की वजह ये नहीं हो सकती।
बिहार का सियासी गणित सुलझा रही भाजपा!
उपराष्ट्रपति के इस्तीफ़े को सीधे तौर पर बिहार चुनाव से नहीं जोड़ा जा सकता। जगदीप धनखड़ जिस समुदाय से आते हैं, उसका बिहार में वजूद ही नहीं है। इसलिए उनके इस्तीफ़े से किसी के खुश या नाराज़ होने का सवाल ही नहीं उठता। क्या ये मुमकिन है कि धनखड़ की जगह किसी और को उपराष्ट्रपति बनाकर भाजपा बिहार में अपने राजनीतिक हित साधने की योजना बना रही हो? जिस तरह से सोशल मीडिया पर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश को अगला उपराष्ट्रपति बनाने की चर्चा है, उससे ये तर्क मज़बूत लगता है। लेकिन हरिवंश भाजपा में नहीं हैं। वो जदयू कोटे से राज्यसभा पहुँचे हैं। सवाल यह है कि क्या भाजपा अपने वरिष्ठ नेता की बलि देकर किसी सहयोगी दल के नेता को उपराष्ट्रपति बना सकती है। वह भी तब जब वह बिहार में गठबंधन की कनिष्ठ सहयोगी है।
विपक्ष के आरोप निराधार
कुछ विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया है कि धनखड़ हाल के दिनों में सरकार के उनके प्रति रवैये से नाराज़ थे। उन्होंने कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग मामले में धनखड़ के बयानों के बाद वे दबाव में थे। विपक्षी दल सोमवार को हुई एक बैठक का भी हवाला दे रहे हैं जिसमें केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा और किरण रिजिजू शामिल नहीं हुए थे। राज्यसभा में नड्डा का एक बयान भी चर्चा में है जिसे सदन के अध्यक्ष के अपमान के तौर पर पेश किया जा रहा है। इस मामले में नड्डा की सफाई के बाद किसी भी संदेह की गुंजाइश नहीं बची है। धनखड़ से सरकार की नाराज़गी की अटकलें भी निराधार हैं क्योंकि उपराष्ट्रपति रहते हुए वे कभी भी सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने में बाधा नहीं बने।
आगे क्या
खैर, सवाल यह है कि अब क्या होगा। उपराष्ट्रपति का पद संवैधानिक है। संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है। संविधान में उपराष्ट्रपति से संबंधित केवल एक ही प्रावधान है, जो राज्यसभा के सभापति के रूप में उसके कार्य से संबंधित है। यदि यह पद रिक्त हो जाता है, तो यह कार्य राज्यसभा के उपसभापति या भारत के राष्ट्रपति द्वारा अधिकृत किसी अन्य सदस्य द्वारा किया जाता है।
60 दिनों के भीतर चुनाव
संविधान के अनुच्छेद 68(2) के अनुसार, उपराष्ट्रपति की मृत्यु, त्यागपत्र या पद से हटाए जाने या किसी अन्य कारण से उत्पन्न रिक्ति को भरने के लिए यथाशीघ्र चुनाव कराने का प्रावधान है। सामान्य परिस्थितियों में, अगले उपराष्ट्रपति का चुनाव निवर्तमान उपराष्ट्रपति के कार्यकाल की समाप्ति के 60 दिनों के भीतर किया जाना होता है। संविधान के अनुच्छेद 66 के अनुसार, संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सदस्यों से मिलकर बना निर्वाचक मंडल उपराष्ट्रपति का चुनाव करता है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार, चुनाव एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है। मतदान गुप्त मतदान द्वारा होता है।
अगले उपराष्ट्रपति का कार्यकाल
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और संविधान विशेषज्ञ संजय हेगड़े के अनुसार, नए उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 68(2) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि नए उपराष्ट्रपति का चुनाव उनके पूर्ण कार्यकाल के लिए होगा, न कि निवर्तमान राष्ट्रपति के शेष कार्यकाल के लिए।