भारतीय नौसेना में शामिल हो रहा INS Nistar, स्वदेशी DSV ड्रैगन की हर चाल पर पड़ेगा भारी, जानिए खासियत?
भारतीय नौसेना की ताकत अब और बढ़ गई है। दरअसल, भारत का पहला स्वदेशी डाइविंग सपोर्ट वेसल (DSV) INS निस्तार आज नौसेना के बेड़े में शामिल हो गया है। INS निस्तार को विशाखापत्तनम स्थित नौसेना डॉकयार्ड में केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ की मौजूदगी में नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया। INS निस्तार का डिज़ाइन और निर्माण भारत में ही किया गया है। हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड ने इसे 8 जुलाई 2025 को ही भारतीय नौसेना को सौंप दिया था। इस युद्धपोत का निर्माण भारतीय शिपिंग रजिस्टर के नियमों के तहत किया गया है।
'हथियारों के आयातक से निर्यातक बन रहा है भारत'
केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ ने कहा कि 'भारतीय नौसेना का गौरवशाली इतिहास रहा है और INS निस्तार भारत की ताकत को और बढ़ाएगा।' उन्होंने कहा कि 'भारत आज सैन्य मामलों में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है और अब आयातक से निर्यातक बन रहा है। भारत ने 23,622 करोड़ रुपये के हथियारों का निर्यात किया है और अब 50 हज़ार करोड़ रुपये के हथियारों के निर्यात का लक्ष्य है।' इस अवसर पर नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी ने कहा कि 'नया आईएनएस निस्तार नौसेना की गोताखोरी क्षमता और गहरे पानी में भी काम करने की क्षमता को बेहतर बनाएगा।' उन्होंने कहा कि 'पुराने जहाज कभी नष्ट नहीं होते, वे बस नए रूप में हमारे पास वापस आते हैं।'
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम
यह रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार के आधिकारिक बयान के अनुसार, इस युद्धपोत को बनाने के लिए कुल 120 एमएसएमई कंपनियों ने मिलकर काम किया है। आईएनएस निस्तार के 80 प्रतिशत उपकरण स्वदेशी हैं। यह युद्धपोत आधुनिक तकनीक से लैस है और इसकी मदद से इसे समुद्र में गहराई तक उतारा जा सकता है। यह गोताखोरी सहायता पोत राहत एवं बचाव कार्यों, मरम्मत कार्यों आदि में काफी मददगार साबित होगा। दुनिया के चुनिंदा देशों के पास ही आईएनएस निस्तार जैसी सेना है।
नौसेना की बढ़ी ताकत
निस्तार नाम संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है स्वतंत्रता या बचाव। आईएनएस निस्तार की खासियत की बात करें तो यह 118 मीटर लंबा और 10 हजार टन वजनी जहाज है, जो समुद्र में गहराई तक जाने में मदद करने वाले उपकरणों से लैस है। इसकी मदद से 300 मीटर की गहराई तक जाया जा सकता है। यह पोत डीएसआरवी के लिए मदर शिप का काम करता है। अगर किसी पनडुब्बी में कोई आपात स्थिति आती है, तो मरम्मत कार्य या बचाव कार्य के लिए कर्मियों को 1000 मीटर की गहराई तक उतारा जा सकता है। भारतीय नौसेना को सबसे पहले 1969 में सोवियत संघ से अपना पहला डाइविंग सपोर्ट पोत मिला था। करीब दो दशक की सेवा के बाद उसे सेवानिवृत्त कर दिया गया। अब आईएनएस निस्तार स्वदेशी है और भारत में ही डिजाइन किया गया है।