धनखड़ एक नहीं, दो जजों पर महाभियोग प्रस्ताव करने वाले थे स्वीकार, सरकार को नहीं आया पसंद और 4 घंटे में बदल गया खेल
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से अचानक इस्तीफा देकर पूरे देश को चौंका दिया है। वहीं, उनके इस्तीफे को लेकर राजनीति गरमा गई है। विपक्ष का कहना है कि स्वास्थ्य तो बस एक बहाना है, इसके पीछे गहरे कारण हैं। विपक्ष जहां इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रहा है, वहीं सत्ताधारी दल अब तक इस पर चुप्पी साधे हुए है।
धनखड़ ने सोमवार रात करीब नौ बजे इस्तीफा दिया था, अगले दिन यानी मंगलवार दोपहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर पोस्ट कर धनखड़ के बेहतर स्वास्थ्य की कामना की और उन्हें एक किसान का बेटा और एक प्रेरणादायक नेता बताया। हालांकि, पार्टी या सरकार की तरफ से इस बारे में कोई खास जानकारी सामने नहीं आई है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील और समाजवादी पृष्ठभूमि से आने वाले जगदीप धनखड़ जब भाजपा में शामिल हुए थे, तब कोई जाना-पहचाना नाम नहीं थे, लेकिन पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और फिर उपराष्ट्रपति के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों के चलते उन्होंने खुद को सुर्खियों में बनाए रखा। वह सरकार की तारीफ करने से पीछे नहीं हटते थे और कई मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखते थे।
उपराष्ट्रपति के संवैधानिक पद से उनके अचानक इस्तीफे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा सवाल इसकी वजह जानना है। हालाँकि, सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे धनखड़ के कार्यों और बयानों को लेकर सरकार की बढ़ती नाराज़गी थी। पहले भी धनखड़ को इस बारे में बताया गया था, लेकिन वे स्थिति को ठीक नहीं कर पाए। मानसून सत्र के पहले दिन, सरकार की नाराज़गी उस समय काफ़ी बढ़ गई जब राज्यसभा ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ विपक्षी सांसदों के एक प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, क्योंकि सरकार इस प्रस्ताव को लोकसभा में लाने की तैयारी कर रही थी और विपक्ष ने भी इस पर सहमति जताई थी।
सूत्रों के अनुसार, धनखड़ ने जिस तरह से इसे राज्यसभा में स्वीकार किया, उससे भी सरकार की गहरी नाराज़गी हुई। सरकार उपराष्ट्रपति द्वारा बुलाई गई बीएसी की बैठक में भी शामिल नहीं हुई, हालाँकि सरकार ने इसे दूसरा कार्यक्रम बताया और कहा कि सभापति को इसकी जानकारी दे दी गई थी। उसी रात जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे दिया। इसमें उन्होंने अपनी सेहत से जुड़ा कारण बताया, लेकिन मामला राजनीतिक माना जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार, धनखड़ लगातार न्यायपालिका पर भी निशाना साध रहे थे, जिससे सरकार सहमत नहीं थी। कुल मिलाकर, धनखड़ की कार्यशैली को लेकर सरकार में नाराजगी बढ़ रही थी, जिसके चलते आखिरकार यह स्थिति पैदा हुई।
इस बीच, मंगलवार को संसद के गलियारों में विपक्ष से लेकर सत्ता पक्ष तक यही सवाल तैरता रहा कि आखिर क्या बड़ी वजह थी कि देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठे उपराष्ट्रपति को अपने कार्यकाल के बीच में ही पद छोड़ना पड़ा। जबकि, उन्होंने करीब 10 दिन पहले दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम में कहा था कि वह 2027 तक यानी पूरे कार्यकाल तक अपने पद पर बने रहेंगे।
सोमवार सुबह संसद में ऐसी कोई हलचल नहीं दिखी, जिससे लगे कि उपराष्ट्रपति इस्तीफा देने वाले हैं। सूत्रों के मुताबिक, कुछ नेता इसे भाजपा के आगामी बड़े और कड़े फैसलों से भी जोड़ रहे हैं, जिसमें व्यापक बदलाव किए जाने और पार्टी के समीकरण में फेरबदल किए जाने की संभावना है।
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने संसद परिसर में पत्रकारों से कहा, सरकार को बताना चाहिए कि उपराष्ट्रपति ने इस्तीफा क्यों दिया। उन्होंने कहा, 'मैंने उपराष्ट्रपति का इस्तीफा देखा है। उन्होंने सरकार को धन्यवाद दिया, लेकिन सरकार ने कोई टिप्पणी नहीं की। सरकार को कम से कम उनका धन्यवाद तो करना चाहिए था। वे इसके हक़दार हैं।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने जगदीप धनखड़ के जबरन इस्तीफ़े के बारे में प्रधानमंत्री के पोस्ट को एक्स पर पोस्ट किया है, जिससे रहस्य और गहरा गया है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री थोड़े और उदार हो सकते थे, आख़िरकार, वे दोहरे मानदंडों के स्वामी हैं। उन्होंने दावा किया कि एक किसान के बेटे को सम्मानजनक विदाई भी नहीं दी जा रही है।
राजद नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया कि उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ का इस्तीफ़ा भाजपा को बिहार में जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार को एनडीए नेता बनाए रखने की अपनी मजबूरी पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करेगा।