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‘OBC की रक्षा नहीं कर पाया, मेरी गलती है…’, कांग्रेस के ‘भागीदारी न्याय सम्मेलन’ में राहुल गांधी का बड़ा बयान

 

दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में कांग्रेस का ओबीसी सम्मेलन चल रहा है, जिसका उद्देश्य ओबीसी समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक भागीदारी बढ़ाना है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कांग्रेस के 'सहभागी न्याय सम्मेलन' को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि दलितों और आदिवासियों की समस्याओं को समझना आसान है, लेकिन ओबीसी वर्ग के मुद्दों और समस्याओं को समझना बहुत मुश्किल है। जाति जनगणना न कराना हमारी गलती थी, लेकिन अब हम समय के साथ अपनी गलती सुधार रहे हैं।

ओबीसी की सुरक्षा न करने का पछतावा

राहुल गांधी ने कहा कि मैं 2004 से राजनीति में हूँ और आज जब भी पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो मुझे लगता है कि मैंने कई गलतियाँ की हैं। सबसे बड़ी गलती ओबीसी वर्ग को लेकर है। मैंने ओबीसी वर्ग के लोगों की उस तरह सुरक्षा नहीं की जैसी मुझे करनी चाहिए थी। क्योंकि मैंने ओबीसी वर्ग की समस्याओं और मुद्दों को गहराई से नहीं समझा। अगर ओबीसी वर्ग के इतिहास, संघर्षों, मुद्दों और समस्याओं की जानकारी होती तो जाति जनगणना ज़रूर होती। गलती कांग्रेस पार्टी से नहीं, बल्कि मुझसे हुई थी और अब मैं अपनी गलती सुधारने जा रहा हूँ।

सम्मेलन का उद्घाटन मल्लिकार्जुन खड़गे ने किया

बता दें कि कांग्रेस ओबीसी सम्मेलन का उद्घाटन दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने किया और समापन राहुल गांधी ने किया। सम्मेलन में कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और हरियाणा से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा समेत देश भर के ओबीसी नेताओं ने हिस्सा लिया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना की मांग दोहराई।

सम्मेलन में ओबीसी वर्ग के लिए रखी गईं मांगें

बता दें कि सम्मेलन में ओबीसी के लिए 27% राजनीतिक आरक्षण, स्वतंत्र ओबीसी मंत्रालय और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग की गई। मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरएसएस और भाजपा को सामाजिक न्याय के खिलाफ जहरीला संगठन बताया और प्रधानमंत्री मोदी पर झूठ बोलने का आरोप भी लगाया। वहीं, कांग्रेस के इस ओबीसी सम्मेलन को बिहार में ओबीसी मतदाताओं को लामबंद करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि बिहार में ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं और विधानसभा चुनाव के नतीजों पर इनका असर देखने को मिल सकता है।