पत्नी ने तलाक लेने के लिए पति को बता दिया नपुंसक, हाई कोर्ट ने माना क्रूरता
शादी के चार साल बाद पति-पत्नी के बीच रिश्ते इतने बिगड़ गए कि वे अलग रहने लगे। सात साल अलग रहने के बाद पति ने पारिवारिक न्यायालय में तलाक की अर्जी दाखिल की। मामले की सुनवाई के दौरान पत्नी ने पति पर गंभीर आरोप लगाए। बिना मेडिकल रिपोर्ट के ही पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय में पति पर नपुंसक होने का आरोप लगा दिया।
मामले की सुनवाई के बाद पारिवारिक न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी। पारिवारिक न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पति ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की। मामले की सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने पति की याचिका मंजूर कर ली और तलाक का आदेश जारी कर दिया।
जांजगीर-चांपा निवासी एक युवक ने 2 जून 2013 को बलरामपुर जिले की एक युवती से विवाह किया। विवाह के समय पति, जो शिक्षाकर्मी था, बैकुंठपुर चर्च कलारी में कार्यरत था। पत्नी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत है।
शादी के कुछ महीनों बाद ही पत्नी ने पति पर तबादले का दबाव बनाना शुरू कर दिया। वह उसी जगह या उसके आस-पास तबादला करने की मांग करने लगी जहाँ वह कार्यरत थी। ट्रांसफर न होने पर वह उस पर नौकरी छोड़ने का दबाव बना रही थी। आपसी विवाद और संवादहीनता के चलते दोनों 2017 से अलग रहने लगे।
पत्नी ने लगाए गंभीर आरोप
इस बीच, दोनों के बीच संवाद भी बंद हो गया। सात साल अलग रहने के बाद, 2022 में पति ने पारिवारिक न्यायालय में तलाक की अर्जी दाखिल की। पारिवारिक न्यायालय में सुनवाई के दौरान पत्नी ने पति पर गंभीर आरोप लगाए। उसने पति पर नपुंसक होने का आरोप लगाया और कहा कि वह यौन संबंध बनाने में असमर्थ है।
अदालत में उसने यह भी स्वीकार किया कि उसके पास आरोप की पुष्टि के लिए मेडिकल रिपोर्ट जैसा कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है। इस आरोप के जवाब में पति ने कहा कि इससे पहले जब पत्नी का विवाद हुआ था, तो उसने उस पर पड़ोस की एक महिला के साथ अवैध संबंध होने का आरोप लगाया था।
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हाईकोर्ट ने की कड़ी टिप्पणी, कहा- यह मानसिक प्रताड़ना है
मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने लिखा है कि बिना ईमानदारी के किसी व्यक्ति पर नपुंसकता जैसे गंभीर आरोप लगाना मानसिक क्रूरता से कम नहीं है। ऐसे आरोप न केवल गरिमा को ठेस पहुँचाते हैं, बल्कि संबंधित व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा असर डालते हैं।