छत्तीसगढ़ की प्राथमिक शाला पिपरिया की अनूठी पहल: अब कोई भी छात्र नहीं बैठता 'पीछे'
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ विकासखंड की प्राथमिक शाला पिपरिया शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक उदाहरण बनकर उभरी है। यहां अब कोई भी छात्र खुद को ‘पीछे’ नहीं मानता, क्योंकि कक्षा में सभी विद्यार्थी एक खास ‘यू’ आकार में बैठते हैं – जहां हर किसी की समान भागीदारी होती है।
इस अभिनव प्रयोग की शुरुआत विद्यालय की शिक्षिका सुमिता शर्मा ने की है। उन्होंने पारंपरिक पंक्तियों वाली बैठने की व्यवस्था को हटाकर एक समावेशी ‘यू’ आकार का फॉर्मेट अपनाया, जिससे हर बच्चे को न सिर्फ शिक्षक से सीधे संवाद का मौका मिलता है, बल्कि वे एक-दूसरे से भी आसानी से जुड़ते हैं।
इस नई व्यवस्था के लाभ:
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सभी बच्चे शिक्षक के सामने रहते हैं, जिससे निगरानी और संवाद दोनों बेहतर होता है।
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कक्षा में पिछड़ेपन की भावना खत्म हो गई है, कोई भी छात्र अब खुद को 'पीछे बैठा हुआ' महसूस नहीं करता।
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बच्चों में आत्मविश्वास और सहभागिता बढ़ी है, वे अब ज्यादा सवाल पूछते हैं और उत्तर देने के लिए उत्साहित रहते हैं।
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सामूहिकता और समानता का भाव विद्यार्थियों में विकसित हो रहा है।
शिक्षिका सुमिता शर्मा का कहना है:
“हमने महसूस किया कि कई बार पीछे बैठे बच्चे ध्यान नहीं दे पाते थे। ‘यू’ आकार में बैठाने से सबका ध्यान केंद्रित रहता है और वे अधिक सक्रिय होकर सीखते हैं।”
जिला शिक्षा अधिकारी और अन्य शिक्षक भी प्रभावित:
इस पहल को शिक्षा विभाग ने भी सराहा है। अधिकारी इसे अन्य विद्यालयों में भी लागू करने पर विचार कर रहे हैं।
पिपरिया की यह पहल यह साबित करती है कि शिक्षा में छोटे लेकिन सोच-समझकर किए गए बदलाव, बच्चों के सीखने की प्रक्रिया को बेहद प्रभावी और समावेशी बना सकते हैं।