सुप्रीम कोर्ट का आदिवासी बेटियों को संपत्ति में समान हक देने का निर्णय, आदिवासी समुदाय ने किया विरोध
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आदिवासी परिवारों में बेटियों को संपत्ति में समान हक देने का ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है, जो आदिवासी समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। हालांकि, इस फैसले का प्रदेश के आदिवासी समुदाय ने विरोध किया है। उनका कहना है कि यह निर्णय संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों और उनकी पारंपरिक परंपराओं के खिलाफ है, और इससे आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धारा को नुकसान हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, अब आदिवासी परिवारों में बेटियों को भी संपत्ति में बराबरी का अधिकार मिलेगा, जैसा कि भारतीय संविधान ने महिलाओं को संपत्ति और विरासत में समान अधिकार दिए हैं। यह निर्णय विशेष रूप से उन आदिवासी क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है, जहां संपत्ति का अधिकार पारंपरिक रूप से पुरुषों तक ही सीमित रहता था।
हालांकि, इस फैसले को लेकर आदिवासी समुदाय के कई नेता और संगठन असहमत हैं। उनका तर्क है कि यह निर्णय आदिवासी समुदाय की परंपराओं, रीति-रिवाजों और सामाजिक संरचना के विपरीत है। आदिवासी समाज में संपत्ति के अधिकार पारंपरिक रूप से पुरुषों के पास होते हैं, और उनके अनुसार इस फैसले से समुदाय के भीतर सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव हो सकते हैं, जो उनके अस्तित्व और पहचान को प्रभावित कर सकते हैं।
विरोध करने वाले नेताओं का कहना है कि इस निर्णय के परिणामस्वरूप आदिवासी समाज की सामाजिक संरचना में अस्थिरता आ सकती है, क्योंकि यह उनके पारंपरिक भूमि अधिकारों और परिवारिक व्यवस्था के खिलाफ है। इसके अलावा, आदिवासी परिवारों में भूमि का मालिकाना हक अक्सर सामूहिक रूप से होता है, और यह निर्णय उन पर दबाव डाल सकता है।
इसी बीच, आदिवासी समुदाय के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने की योजना बनाई है। उनका कहना है कि यह फैसला बिना समुदाय की राय लिए हुआ है और इसके लंबे समय तक प्रभावी परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने सरकार से यह अपील की है कि इस मुद्दे पर आदिवासी समुदाय की परंपराओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक समझौता निकाला जाए।