छत्तीसगढ़ के कबीरधाम में न्याय की गुहार, जमीन कब्जे से परेशान परिवार ने दुधमुंहे बच्चे के साथ कलेक्ट्रेट में बिताई रात
न्याय की आस लिए कबीरधाम जिले के सिंघनपुरी (लालपुर) गांव से आया एक परिवार शुक्रवार रात से शनिवार सुबह तक कलेक्ट्रेट परिसर में बैठा रहा, वो भी अपने दुधमुंहे बच्चे और महिलाओं के साथ। आरोप है कि उनकी पैतृक जमीन पर कब्जा कर लिया गया है, लेकिन बार-बार शिकायत के बावजूद उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही। निराश होकर पीड़ित परिवार को रात भर कलेक्टर ऑफिस में धरना देना पड़ा, ताकि उन्हें न्याय मिल सके।
प्रशासनिक दरवाजे पर इंसाफ की आस
परिवार शुक्रवार शाम 7 बजे कलेक्टर कार्यालय पहुंचा और जमीन विवाद को लेकर न्याय की गुहार लगाई। उनका कहना है कि गांव में उनकी जमीन पर दबंगों ने कब्जा कर लिया है और उन्हें खेती तक नहीं करने दी जा रही। शिकायत के बावजूद न तो पुलिस ने कोई सख्त कार्रवाई की, न ही राजस्व विभाग ने समस्या सुलझाई। अंत में, परेशान होकर वे पूरे परिवार के साथ कलेक्टोरेट पहुंच गए।
महिलाओं और बच्चों ने भी जताया विरोध
धरने में परिवार की महिलाएं और एक दुधमुंहा बच्चा भी शामिल था, जो पूरी रात प्रशासनिक भवन में खुले आसमान के नीचे रहा। यह नजारा आम जनता और अधिकारियों के लिए आंखें खोलने वाला था कि किस तरह एक ग्रामीण परिवार न्याय के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है।
अधिकारी देते रहे समझाइश
जानकारी के अनुसार, जिला प्रशासन के कुछ अधिकारी देर रात और सुबह तक मौके पर पहुंचते रहे और पीड़ितों को आश्वासन देते रहे कि मामले को गंभीरता से लिया जाएगा। हालांकि, जब तक कोई लिखित आदेश या कार्रवाई नहीं हुई, तब तक पीड़ित परिवार ने कलेक्ट्रेट परिसर नहीं छोड़ा।
पीड़ित परिवार की पीड़ा
परिवार के मुखिया ने बताया, “हम कई बार तहसील और थाने का चक्कर काट चुके हैं। हर जगह सिर्फ तारीख और जांच की बात होती है, लेकिन जमीन कब्जे का मामला जस का तस बना हुआ है। हमें मजबूर होकर दुधमुंहे बच्चे को लेकर कलेक्ट्रेट आना पड़ा।”
प्रशासन ने किया कार्रवाई का भरोसा
शनिवार सुबह करीब 9:30 बजे, प्रशासन ने पीड़ित परिवार को समझाकर कलेक्ट्रेट से उठाया और भरोसा दिलाया कि अगले दो दिनों में राजस्व और पुलिस टीम संयुक्त निरीक्षण कर उचित कार्रवाई करेगी। वहीं, जिला कलेक्टर ने भी इस पर रिपोर्ट मांगी है।
स्थानीय लोगों में आक्रोश
इस घटना के बाद स्थानीय समाजसेवियों और ग्रामीणों में प्रशासनिक निष्क्रियता को लेकर रोष है। उनका कहना है कि जब तक न्याय के लिए परिवारों को रात भर कलेक्टर ऑफिस में बैठना पड़े, तब तक “जनहित” और “गांव-गरीब” के नाम पर चल रही योजनाएं व्यर्थ हैं।
निष्कर्ष
कबीरधाम की यह घटना व्यवस्था की संवेदनहीनता और आमजन की बेबसी को उजागर करती है। अब देखना यह है कि प्रशासन वाकई कार्रवाई करता है या फिर यह मामला भी बाकी फाइलों की तरह अलमारी में बंद होकर रह जाएगा।
बहरहाल, इस परिवार की रात जो न्याय की उम्मीद में खुले आसमान तले बीती, वह छत्तीसगढ़ में ग्रामीण समस्याओं की एक सशक्त तस्वीर बनकर उभरी है।