देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त माओवादी संगठन ने पहली बार मानी अपनी रणनीतिक विफलता, सुरक्षाबलों के दबाव में असाधारण क्षति का किया स्वीकार
देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए लंबे समय से चुनौती बने माओवादी संगठनों ने पहली बार अपनी रणनीतिक विफलताओं और सुरक्षाबलों के निरंतर दबाव में आई भारी क्षति को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है। यह स्वीकारोक्ति न केवल उनकी कमजोर होती संगठनात्मक ताकत की ओर इशारा करती है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की समन्वित कार्रवाई माओवादियों पर भारी पड़ रही है।
संगठन की स्वीकारोक्ति ने खोले कई राज
एक हालिया माओवादी बयान में संगठन ने यह स्पष्ट किया है कि बीते वर्षों में चलाए गए ऑपरेशनों में उसे भारी मानव और लॉजिस्टिक नुकसान उठाना पड़ा है। खासतौर पर छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और महाराष्ट्र के माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों की सघन कार्रवाई के चलते माओवादियों की कमर टूटती नजर आ रही है।
माओवादी संगठन ने यह भी स्वीकारा कि उसके कई सीनियर कैडर मारे जा चुके हैं या गिरफ्तार कर लिए गए हैं, जिससे संगठनात्मक नेतृत्व कमजोर पड़ा है। इसके साथ ही युवाओं में अब पहले जैसी माओवादी विचारधारा के प्रति आकर्षण नहीं बचा है, जिससे नए भर्ती का संकट भी गहराया है।
सुरक्षाबलों की रणनीति साबित हो रही कारगर
सुरक्षाबलों द्वारा इंटेलिजेंस आधारित ऑपरेशन, आधुनिक तकनीकी उपकरणों का उपयोग, स्थानीय पुलिस और केंद्रीय बलों का तालमेल और लगातार क्षेत्रीय विकास को प्राथमिकता देने की रणनीति ने माओवादियों के लिए ज़मीन संकरी कर दी है।
इसके अलावा सरकार की पुनर्वास नीति और आत्मसमर्पण योजनाओं ने कई सक्रिय नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया है।
क्यों खास है यह स्वीकारोक्ति?
यह पहली बार है जब माओवादी संगठन ने सार्वजनिक रूप से अपनी कमजोरियों को माना है। आम तौर पर ये संगठन अपनी छवि को ‘अजेय’ दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन इस बार उनका यह बयान मनोवैज्ञानिक दबाव और हार की भावना को दर्शाता है। यह संकेत भी मिल रहा है कि माओवादी विचारधारा की पकड़ अब ढीली पड़ती जा रही है।
विशेषज्ञों की राय
आंतरिक सुरक्षा मामलों के जानकारों का मानना है कि यह माओवादियों की एक ‘मनोबल बढ़ाने की आखिरी कोशिश’ हो सकती है, जिसमें वे खुद को फिर से संगठित करने के लिए सहानुभूति बटोरना चाहते हैं। लेकिन असलियत यह है कि माओवाद अब एक सीमित क्षेत्र और सीमित प्रभाव तक सिमट कर रह गया है।