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दरभंगा:भागवत कथा के अंदर रास का विशेष महत्व : कथावाचक

 

दरभंगा।भागवत कथा के अंदर रास का विशेष महत्व बताया गया है। जहां रास स्वरूप भगवान का प्राकट्य हो, गोपी और कृष्ण का मिलन हो। जीवात्मा-परमात्मा का एकीकरण हो उसे रास कहते हैं। महारास भगवान की वह दिव्य लीला जिसमें योगेश्वर भगवान शिव की गोपी वेश बनाकर उसमें भाग लिए। गो आज भी गोपेश्वरनाथ महादेव के रूप में ब्रजमंडल में प्रतिष्ठित है। श्रीकृष्ण की बांसुरी साक्षात योगमाया थी, जो जड़ को चेतन एवं चेतन को जड़ बना देती थी। उक्त बातें आनंदपुर सहोड़ा स्थित आयोजित श्रीमद्भागवत नवाह कथा ज्ञान यज्ञ के आठवें दिन कथावाचक आचार्य हेमचंद्र ठाकुर ने कही। गोवर्धन उठाने में साम‌र्थ्यवान हो, रास रचाने का अधिकार उसी को है। गोवर्धन लीला श्रीकृष्ण के अनेक माधुर्य लीलाओं में साम‌र्थ्य लीला कहलाती है।  इस दौरान आशुतोष जी द्वारा महाआरती का प्रदर्शन किया गया। जो आकर्षण का केंद्र था। मौके पर पूजा कमेटी के अध्यक्ष कृष्णकांत चौधरी रमणजी, रामबाबू झा, मणिकांत झा मन्नू, विपिन झा, पारसनाथ चौधरी, दीपक झा, पंडित मेधानंद झा, आचार्य ललन मिश्र, देवेन्द्र मिश्र, फूलबाबू मिश्र, पंडित बैजू झा, विजय चौधरी, मुन्ना शर्मा, वंशीधर झा, देवेन्द्र मिश्र, ललित मिश्र, विवेकानंद चौधरी, नवीन कुमार चौधरी, गोपाल चौधरी, विजय चौधरी, सतीश शर्मा, संजय पासवान, विश्वनाथ पासवान, मुन्ना झा आदि सक्रिय थे।