लूट की शिकायत दर्ज कराने गया युवक बना पुलिस की बर्बरता का शिकार, मामला NHRC और BHRC तक पहुंचा
बिहार पुलिस की कार्यशैली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। मुजफ्फरपुर जिले के रामपुर हरि थाना से पुलिस की बर्बरता का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। एक युवक जब लूट की शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंचा, तो उसे न्याय दिलाने की बजाय खुद पुलिस की हिंसा और गाली-गलौज का सामना करना पड़ा। थानेदार ने न सिर्फ पीड़ित को बेरहमी से पीटा, बल्कि उसे थाने में हिरासत में लेकर अमानवीय व्यवहार भी किया।
यह मामला अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग (BHRC) तक पहुंच चुका है, जिसके बाद पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया है।
क्या है पूरा मामला?
घटना रामपुर हरि थाना क्षेत्र की है, जहां स्थानीय निवासी रविकांत कुमार (बदला हुआ नाम) के साथ कुछ अज्ञात बदमाशों ने लूट की घटना को अंजाम दिया। घटना के तुरंत बाद रविकांत जब शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंचा, तो उम्मीद थी कि पुलिस उसकी मदद करेगी और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। लेकिन थाने में मौजूद थानेदार ने रविकांत के साथ बेहद असंवेदनशील रवैया अपनाया।
पीड़ित के अनुसार, थानेदार ने पहले तो उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया और फिर उसे झूठा करार देते हुए गाली-गलौज शुरू कर दी। इसके बाद रविकांत को लॉकअप में बंद कर दिया गया और कथित तौर पर उसकी पिटाई की गई।
NHRC और BHRC में दर्ज हुई शिकायत
थाने में हुई इस बर्बरता से आहत होकर पीड़ित ने सीधे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग (BHRC) में लिखित शिकायत दर्ज कराई है। पीड़ित ने अपने आवेदन में पूरी घटना का ब्योरा देते हुए निष्पक्ष जांच और दोषी पुलिसकर्मी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
मानवाधिकार आयोगों ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित पुलिस अधिकारियों से जवाब-तलब किया है और जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है।
पुलिस महकमे में हड़कंप
मामले के तूल पकड़ते ही पुलिस महकमे में हलचल मच गई है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) ने मामले की प्रारंभिक जांच के आदेश दे दिए हैं और रामपुर हरि थाना के थानेदार से स्पष्टीकरण मांगा गया है। सूत्रों के मुताबिक, यदि जांच में थानेदार दोषी पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
मानवाधिकार उल्लंघन पर गंभीर सवाल
यह घटना बिहार में कानून व्यवस्था और पुलिस की जवाबदेही पर एक बार फिर से बड़ा सवाल खड़ा करती है। जहां एक ओर सरकार पुलिस को जनता का "मित्र" बताने की कोशिश कर रही है, वहीं ऐसे मामले पुलिस के अमानवीय चेहरे को उजागर करते हैं।