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बिहार में विदेश‍ियों के वोटर बनने का खेल क्‍या, चुनाव आयोग ने ऐसा क्‍या पूछा क‍ि पकड़ में आ गए

 

बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) जब घर-घर जाकर सर्वे कर रहे हैं तो वे वोटर की पहचान और नागरिकता सुनिश्चित करने के लिए कई सवाल पूछ रहे हैं। लेकिन एक अहम सवाल जो प्रवासियों को पहचानने में सबसे ज्यादा मददगार साबित हो रहा है, वह है:

"आपके माता-पिता या दादा-दादी किस जगह के मूल निवासी थे और कब से आप इस पते पर रह रहे हैं?"

इस सवाल से होता है तीन चीजों का खुलासा:

  1. नस्लीय/परिवारिक जड़ें – व्यक्ति का जन्मस्थान और वंशावली अगर भारत की नहीं है तो वह जवाब देते समय अटकता है।

  2. आवासीय स्थायित्व – कितने वर्षों से इस पते पर है, इसका जवाब ही साफ करता है कि कोई हाल ही में आया है या पुराना निवासी है।

  3. दस्तावेज की पुष्टि – जवाब के बाद जब BLO दस्तावेज मांगते हैं (जैसे जन्म प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, स्कूल का प्रमाण पत्र, आधार, पासपोर्ट, PRC, आदि), तो अक्सर विदेशी लोग नकली या अप्रमाणिक दस्तावेज पेश करते हैं या कोई भी ठोस प्रमाण नहीं दे पाते।

📊 अब तक की बड़ी बातें:

  • कई नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार मूल के लोग स्थानीय समुदाय में घुल-मिल चुके हैं, लेकिन उनके पास स्थायी भारतीय नागरिकता या वैध दस्तावेज नहीं हैं।

  • चुनाव आयोग के अधिकारियों को शक होने पर उनका डाटा मतदाता सूची से हटाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है।

  • ऐसे मामलों में स्थानीय पुलिस व खुफिया एजेंसियां भी सक्रिय हो जाती हैं।

🔐 कैसे सुनिश्चित किया जा रहा है कि असली नागरिक न फंसे?

  • सभी BLO को स्पष्ट निर्देश है कि बिना उचित जांच के किसी का नाम मतदाता सूची से न हटाया जाए।

  • डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर (DEO) के माध्यम से संदिग्ध मामलों को अंतिम निर्णय तक ले जाया जाता है।

  • यदि कोई व्यक्ति गलत ढंग से हटाया गया है तो वह फॉर्म 6A या शिकायत प्रक्रिया के जरिए अपना नाम पुनः जुड़वाने का अधिकार रखता है।