बिहार में 'मटन पॉलिटिक्स' का वीडियो वायरल, चुनावी मौसम में सियासी तापमान चढ़ा
बिहार में एक वायरल वीडियो ने राजनीतिक गलियारों में जबरदस्त हलचल मचा दी है। इस वीडियो को लेकर पूरे देश में चर्चाएं तेज़ हैं, जिसे सोशल मीडिया पर लोग ‘मटन पॉलिटिक्स’ का नाम दे रहे हैं। चुनावी वर्ष में सावन के पावन महीने के बीच वायरल हुआ यह वीडियो सियासी सरगर्मियों को और तेज़ कर गया है। 32 सेकंड के इस क्लिप ने राजनीतिक दलों के बीच बयानबाज़ी का नया दौर शुरू कर दिया है।
वीडियो में साफ तौर पर कुछ नेताओं को एक मटन पार्टी में शामिल होते हुए देखा जा सकता है। यह आयोजन किस मौके पर हुआ, किसने बुलाया और इसका उद्देश्य क्या था – इन सवालों के जवाब तो अभी स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन इस वीडियो के हर फ्रेम में सत्ता और विपक्ष के बीच राजनीतिक नफ़रत की चटनी ज़रूर नजर आ रही है।
इस वीडियो को लेकर विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ गठबंधन पर निशाना साधते हुए सवाल उठाए हैं कि क्या इस तरह के आयोजन चुनावी आचार संहिता से पहले मतदाताओं को प्रभावित करने की एक कोशिश नहीं है? वहीं सत्ता पक्ष ने पलटवार करते हुए कहा कि यह एक निजी आयोजन था और इसे अनावश्यक राजनीतिक रंग देना विपक्ष की हताशा को दर्शाता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस वीडियो ने 'सामान्य भोज' को भी चुनावी मुद्दा बना दिया है। कुछ नेताओं ने वीडियो में दिखाई दे रही थाली, व्यंजन और नेताओं की हंसी-ठिठोली तक की समीक्षा शुरू कर दी है। सोशल मीडिया पर इस वीडियो को लेकर तरह-तरह के मीम्स और कमेंट्स भी वायरल हो रहे हैं, जिनमें से कई इसे “मटन डिप्लोमेसी” कह रहे हैं।
चुनाव आयोग ने इस मामले पर अब तक कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन सूत्रों के अनुसार यदि यह आयोजन चुनाव की घोषणा के बाद होता या इसमें मतदाताओं को शामिल कर राजनीतिक प्रभाव डालने की कोशिश होती, तो यह आचार संहिता का उल्लंघन माना जा सकता था।
बिहार में इससे पहले भी भोज और भोजनों को लेकर राजनीति गरमा चुकी है। कभी दलित भोज को लेकर सियासत गर्म होती है, तो कभी रोज़ा इफ्तार या छठ पूजा के बहाने राजनीतिक दल एक-दूसरे को घेरते हैं। लेकिन मटन पार्टी को लेकर सियासत का यह ताजा मामला इस बात का प्रतीक है कि इस चुनावी मौसम में हर छोटी-बड़ी बात राजनीतिक रूप ले सकती है।
फिलहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि वायरल हो चुका यह 'मटन वीडियो' आने वाले चुनावी समीकरणों को किस दिशा में मोड़ता है। जनता भी इस सियासी भोज को अब बड़े ध्यान से देख रही है – यह केवल खाने का मामला नहीं, चुनावी ‘स्वाद’ का सवाल बन गया है।