बिहार के वाल्मीकीनगर टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी, देश को मिली बड़ी खुशखबरी
बिहार से wildlife conservation के क्षेत्र में एक बड़ी खुशखबरी सामने आई है। वाल्मीकीनगर टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या पिछले 15 वर्षों में सात गुना बढ़ गई है। वन्य जीव प्रेमियों और संरक्षण कार्यकर्ताओं के लिए यह खबर किसी उत्सव से कम नहीं है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस साल यानी 2025 में होने वाली बाघों की जनगणना में इस रिजर्व में बाघों की संख्या लगभग 70 तक पहुंच सकती है।
वाल्मीकीनगर टाइगर रिजर्व, जो बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित है, बाघ संरक्षण के लिए जाना जाता है। पिछले डेढ़ दशक में वन विभाग और विभिन्न संरक्षण संस्थाओं ने यहाँ बाघों के लिए उपयुक्त पर्यावरण और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। इनमें रिजर्व में शिकारी पशुओं के लिए प्रबंध, जल स्रोतों का विकास, और अवैध शिकार पर रोक शामिल है। इन प्रयासों का सकारात्मक असर बाघों की संख्या पर दिखाई दे रहा है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि बाघों की संख्या में वृद्धि सिर्फ संख्या के मामले में ही नहीं है, बल्कि रिजर्व में उनकी प्रजनन क्षमता और स्वास्थ्य स्तर में भी सुधार हुआ है। इससे साफ है कि संरक्षित क्षेत्रों में उचित पर्यावरण और सुरक्षा उपायों का सीधा असर जंगली जीवन पर पड़ता है।
वन विभाग ने बताया कि पिछले 15 वर्षों में रिजर्व में बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि देखी गई है। 2010 के आंकड़ों के मुताबिक, वाल्मीकीनगर में मात्र 10 से 12 बाघ ही थे। वहीं अब संख्या 7 गुना बढ़कर लगभग 70 के करीब पहुँच चुकी है। यह भारत में बाघ संरक्षण के प्रयासों के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन चुका है।
विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि बाघों की बढ़ती संख्या न केवल वन्य जीवन के संतुलन के लिए अच्छी खबर है, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी और पर्यटन के लिए भी लाभकारी है। रिजर्व में बाघों की अधिकता से प्राकृतिक शिकार और वन्य जीवन की समृद्धि भी बढ़ रही है। साथ ही, पर्यटन और जागरूकता अभियानों के माध्यम से स्थानीय समुदाय भी इस संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
राज्य सरकार और वन विभाग ने आगामी बाघ गणना को लेकर विशेष तैयारियां शुरू कर दी हैं। रिजर्व के विभिन्न क्षेत्रों में कैमरा ट्रैप और ड्रोन निगरानी के माध्यम से बाघों की सटीक संख्या का पता लगाया जाएगा। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाएगा कि गणना के दौरान बाघों और उनके आवास को किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचे।
इस उपलब्धि को देश में बाघ संरक्षण के लिए एक प्रेरक उदाहरण माना जा रहा है। भारत में ‘Project Tiger’ और अन्य संरक्षण कार्यक्रमों की सफलता का भी प्रमाण मिल रहा है। बाघों की संख्या में वृद्धि यह दर्शाती है कि जब उचित नीतियाँ, जागरूकता और संरक्षण प्रयास मिलकर काम करते हैं, तो जंगली जीवन सुरक्षित और समृद्ध हो सकता है।