सीतामढ़ी के पुनौराधाम में शुरू होगा माता सीता मंदिर का निर्माण, पंचतीर्थ का दर्जा मिलने से बढ़ेगा धार्मिक महत्व
मिथिलांचल की पावन भूमि सीतामढ़ी में श्रद्धा और संस्कृति का अद्वितीय संगम देखने को मिलने वाला है। जिले के पुनौराधाम में माता सीता के भव्य और दिव्य मंदिर के निर्माण का कार्य शीघ्र ही प्रारंभ होने जा रहा है। यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत और रामायण कालीन इतिहास को जीवंत रूप देने वाला एक राष्ट्रीय तीर्थ स्थल बनने की ओर अग्रसर है।
श्रद्धा का केंद्र बनेगा पुनौराधाम
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पुनौराधाम वही स्थान है जहां राजा जनक को हल चलाते समय धरती से माता सीता प्राप्त हुई थीं। यह स्थान वर्षों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र रहा है, लेकिन अब यहां एक स्थायी, भव्य और स्थापत्य की दृष्टि से आकर्षक मंदिर का निर्माण प्रस्तावित है।
पंचतीर्थ में हुआ शामिल
केंद्र सरकार ने पुनौराधाम को ‘पंचतीर्थ’ का दर्जा दिया है। इसमें अयोध्या (उत्तर प्रदेश), चित्रकूट (मध्य प्रदेश), जनकपुर (नेपाल), श्रृंगवेरपुर (उत्तर प्रदेश) और अब पुनौराधाम (बिहार) शामिल हैं। पंचतीर्थ की इस श्रेणी में स्थान मिलने से पुनौराधाम को राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक पर्यटन से जोड़ने की दिशा में अहम बढ़त मिली है।
पर्यटन और तीर्थाटन को मिलेगा बढ़ावा
मंदिर निर्माण के साथ-साथ पुनौराधाम परिसर में रामायण और महाभारत काल से जुड़े अन्य स्थलों का भी विकास किया जाएगा। इसके तहत यहां आने वाले तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को रामायण सर्किट से जोड़ते हुए एक सांस्कृतिक भ्रमण अनुभव प्रदान किया जाएगा। इसमें जनक दरबार, राम जानकी विवाह स्थल, ऋषि आश्रम और अन्य पौराणिक स्थलों का विस्तार शामिल है।
स्थानीय लोगों में उत्साह, प्रशासन कर रहा तैयारी
मंदिर निर्माण की सूचना से स्थानीय श्रद्धालुओं और नागरिकों में गहरी खुशी है। उनका मानना है कि इससे क्षेत्र में आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलेगा। वहीं जिला प्रशासन और राज्य सरकार के पर्यटन विभाग ने बुनियादी ढांचे और सड़क-परिवहन सुविधाओं को बेहतर बनाने की योजना पर काम शुरू कर दिया है।
क्या होगा खास मंदिर में?
-
मंदिर का निर्माण प्राचीन वास्तुकला और आधुनिक तकनीक के समन्वय से होगा।
-
परिसर में ध्यान केंद्र, यज्ञशाला, रामायण डिजिटल गैलरी और तीर्थ यात्री विश्राम गृह भी बनाए जाएंगे।
-
निर्माण में स्थानीय कारीगरों और शिल्पियों को विशेष रूप से शामिल किया जाएगा।