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मतदाता सूची पुनरीक्षण पर आरजेडी सांसद मनोज झा की सुप्रीम कोर्ट में याचिका, निर्वाचन आयोग के आदेश को बताया असंवैधानिक

 

बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण के निर्देश को लेकर राजनीतिक घमासान और तेज हो गया है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद प्रो. मनोज झा ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने निर्वाचन आयोग द्वारा 24 जून 2025 को जारी निर्देश को संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करार देते हुए रद्द करने की मांग की है।

क्या है मामला?

निर्वाचन आयोग ने 24 जून को एक विशेष आदेश जारी कर बिहार में मतदाता सूचियों का गहन पुनरीक्षण कराने का निर्देश दिया था। आयोग का तर्क था कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना आवश्यक है। लेकिन विपक्षी दलों ने इस फैसले को राजनीतिक चाल करार दिया है।

याचिका में क्या कहा गया है?

मनोज झा ने अपनी याचिका में दावा किया है कि आयोग का यह निर्णय चयनात्मक और भेदभावपूर्ण है, क्योंकि यह सिर्फ बिहार के लिए लागू किया गया है जबकि अन्य राज्यों में इस तरह की प्रक्रिया नहीं अपनाई गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि इस आदेश से "चुनाव में निष्पक्षता और समानता" को खतरा हो सकता है।

झा ने तर्क दिया कि इस आदेश से संविधान का अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), अनुच्छेद 325 (चुनाव में भेदभाव निषेध) और अनुच्छेद 326 (वयस्क मताधिकार का अधिकार) का उल्लंघन हो रहा है। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि इस आदेश को अविलंब रद्द किया जाए ताकि राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित न हो।

राजनीतिक हलकों में हलचल

मनोज झा की याचिका के बाद बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा हो गई है। राजद और महागठबंधन के अन्य दलों ने निर्वाचन आयोग पर सत्ता पक्ष के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया है, जबकि एनडीए गठबंधन के नेता आयोग के फैसले को "लोकतंत्र को मजबूत करने वाला कदम" बता रहे हैं।

निर्वाचन आयोग की सफाई

हालांकि निर्वाचन आयोग की ओर से अभी तक सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल नहीं किया गया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार आयोग का कहना है कि यह कदम राज्य में मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने और "डुप्लीकेट और फर्जी वोटर" हटाने के उद्देश्य से उठाया गया है।

क्या बोले कानूनी विशेषज्ञ?

कानूनी जानकारों का मानना है कि यह याचिका देश के चुनावी ढांचे में एक संवैधानिक बहस को जन्म दे सकती है—कि क्या निर्वाचन आयोग को राज्य विशेष के लिए अलग प्रक्रिया अपनाने का अधिकार है, और क्या इससे समानता के अधिकार का हनन होता है?