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हिजाब विवाद पर स्थिति स्पष्ट, नीतीश कुमार पर लगाए गए आरोपों को बताया गया गलत

 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा एक मुस्लिम महिला का हिजाब खींचे जाने को लेकर सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में उठे विवाद पर अब स्थिति स्पष्ट होती नजर आ रही है। इस मामले से जुड़े प्रत्यक्षदर्शियों और कार्यक्रम में मौजूद लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने न तो हिजाब खींचा था और न ही किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की उनकी कोई मंशा थी। पूरे घटनाक्रम को गलत तरीके से प्रस्तुत कर विवाद खड़ा किया गया।

दरअसल, हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। वीडियो के कुछ सेकेंड के क्लिप में ऐसा प्रतीत हुआ कि मुख्यमंत्री ने एक मुस्लिम महिला का हिजाब हटाने या खींचने की कोशिश की है। इस वीडियो के सामने आते ही सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं शुरू हो गईं। विपक्षी दलों और कुछ संगठनों ने इसे धार्मिक भावनाओं से जोड़ते हुए मुख्यमंत्री पर गंभीर आरोप लगाए।

हालांकि, कार्यक्रम में मौजूद अधिकारियों और प्रत्यक्षदर्शियों ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उनके अनुसार, मुख्यमंत्री मंच पर मौजूद महिलाओं से संवाद कर रहे थे और उसी दौरान उन्होंने महिला के सिर पर पड़ी चुन्नी या दुपट्टे की ओर इशारा किया था, जिसे कुछ लोगों ने गलत अर्थों में ले लिया। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि मुख्यमंत्री का इशारा केवल बातचीत के संदर्भ में था, न कि किसी प्रकार का अपमान या जबरदस्ती।

मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वायरल वीडियो को अधूरा और संदर्भ से हटाकर पेश किया गया, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हुई। पूरा वीडियो देखने पर स्पष्ट होता है कि मुख्यमंत्री ने न तो महिला को छुआ और न ही उसका हिजाब खींचा। इसके बावजूद सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को तेजी से फैलाया गया और राजनीतिक रंग दे दिया गया।

जेडीयू नेताओं ने भी इस पूरे विवाद को दुर्भावनापूर्ण बताते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सार्वजनिक जीवन सभी के सामने है। वे हमेशा सामाजिक सद्भाव और सभी धर्मों के सम्मान की बात करते रहे हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री पर इस तरह के आरोप उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सोशल मीडिया के दौर में किसी भी वीडियो या तस्वीर को बिना पूरी जानकारी के वायरल कर देना आम बात हो गई है। इससे न केवल व्यक्ति विशेष की छवि प्रभावित होती है, बल्कि समाज में अनावश्यक तनाव भी पैदा होता है। इस मामले में भी अधूरे वीडियो ने विवाद को हवा दी।

वहीं, प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि किसी भी तरह की गलतफहमी को दूर करने के लिए पूरे वीडियो और घटनाक्रम को सामने रखा जाना जरूरी है। ताकि जनता सच्चाई को समझ सके और अफवाहों पर ध्यान न दे।

फिलहाल, इस मामले में स्थिति साफ होती दिखाई दे रही है और आरोपों की पुष्टि नहीं हो सकी है। यह घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे कंटेंट को बिना जांचे-परखे स्वीकार करना कितना उचित है। साथ ही, यह भी संदेश देती है कि संवेदनशील मुद्दों पर जिम्मेदारी के साथ प्रतिक्रिया देना जरूरी है, ताकि सामाजिक सौहार्द बना रहे।