'अब ‘बाहुबली’ नहीं, आम लोग लड़ेंगे चुनाव... वीडियो में देखे बिहार की बदलती राजनीति को लेकर क्या बोले Prashant Kishore ?
बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ आता दिख रहा है। दशकों से जहाँ राजनीति के गलियारों में बाहुबली नेताओं का दबदबा रहा है, वहीं अब चुनावी मैदान में आम लोगों के उतरने की चर्चा हो रही है। चुनावी रणनीतिकार से सामाजिक कार्यकर्ता बने प्रशांत किशोर इस बदलाव की पृष्ठभूमि में हैं। उन्होंने साफ़ संकेत दिया है कि आने वाले समय में बिहार की राजनीति सिर्फ़ धनबल, बाहुबल और जातिवाद पर नहीं, बल्कि आम लोगों की आकांक्षाओं और भागीदारी पर आधारित होगी।
कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जैसे नेताओं के लिए चुनावी रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर अब ख़ुद 'जन सुराज' अभियान के ज़रिए बिहार में बदलाव की नींव रखने में जुटे हैं। उनका कहना है कि अगर सही संगठनात्मक ढाँचा तैयार किया जाए, लोगों को शिक्षित और जागरूक किया जाए, तो हर गाँव से सामान्य परिवार के लोग भी चुनाव लड़ सकते हैं और जीत सकते हैं।
उनकी यह सोच सिर्फ़ विचारों तक सीमित नहीं है, बल्कि ज़मीन पर उतरती दिख रही है। प्रशांत किशोर की टीम पिछले दो सालों से लगातार बिहार के गाँवों में पदयात्रा कर रही है। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ़ लोगों की समस्याएँ सुनीं, बल्कि उन्हें यह समझाने की भी कोशिश की कि राजनीति कुछ चुनिंदा परिवारों या बाहुबलियों का एकाधिकार नहीं है।
प्रशांत किशोर ने साफ़ कर दिया है कि आगामी चुनावों में वे ऐसे उम्मीदवारों को टिकट देंगे जो न तो धनबल से चुनाव लड़ते हैं, न ही अपराध या जातिवाद की राजनीति करते हैं। बल्कि ऐसे लोग आगे आएँगे जो अपने गाँव, पंचायत या ज़िले में ईमानदारी से समाज सेवा कर रहे हैं। उनका कहना है कि "बिहार में बदलाव तभी आएगा जब अच्छे लोग राजनीति में आएंगे, और अच्छे लोग तब आएंगे जब आम आदमी खुद को सक्षम समझेगा।"
इस विचार ने बिहार की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। लंबे समय से राज्य में चुनाव लड़ने के लिए धनबल और बाहुबल को एक शर्त माना जाता रहा है। लेकिन प्रशांत किशोर की पहल इस सोच को तोड़ती दिख रही है।हालाँकि, इस प्रयोग की सफलता की असली परीक्षा 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में होगी। क्या आम लोग वाकई चुनाव जीत पाएँगे? क्या जनता इस बदलाव को स्वीकार करेगी या सिर्फ़ पारंपरिक नेताओं पर ही भरोसा करेगी?
फिलहाल एक बात तो साफ़ है कि बिहार का राजनीतिक माहौल बदल रहा है। प्रशांत किशोर की सोच और उनके कार्यों ने साबित कर दिया है कि अगर इरादे मज़बूत हों, तो सत्ता के गलियारों में बदलाव मुमकिन है। अब देखना यह है कि यह बदलाव कितना रंग लाता है और क्या वाकई बिहार को एक नई राजनीतिक दिशा दे पाएगा या नहीं।