बम-बम भोले की गूंज में इस बार नहीं दिखेंगी ‘कृष्णा माता बम’, 42 वर्षों की डाक यात्रा को विराम देकर अब ओंकारेश्वर से महाकालेश्वर तक करेंगी पदयात्रा
सावन महीने में सुल्तानगंज से बाबा बैद्यनाथ धाम तक की डाक कांवर यात्रा में लालटेन की रोशनी में जब कांवरियों की भीड़ उमड़ती थी, तब उस भीड़ में एक विशेष आकर्षण होती थीं – कृष्णा रानी पांडेय, जिन्हें श्रद्धालु ‘कृष्णा माता बम’ कहकर पुकारते थे। उनकी शिवभक्ति और समर्पण की मिसाल दूर-दूर तक चर्चित रही है। लेकिन इस बार सावन में कांवर पथ पर उनकी अनुपस्थिति महसूस की जाएगी, क्योंकि 72 वर्षीय कृष्णा माता ने 42 वर्षों की अपनी निरंतर डाक यात्रा को विराम देने का निर्णय लिया है।
बाबा बैद्यनाथ से अब महाकाल की ओर
कृष्णा माता ने इस बार एक नई यात्रा का संकल्प लिया है। वे मध्यप्रदेश स्थित ओंकारेश्वर की नर्मदा नदी से जल भरकर पैदल यात्रा करते हुए उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर पहुंचेंगी और वहां भगवान शिव को जल अर्पित करेंगी। यह पदयात्रा करीब 130 किलोमीटर की होगी, जिसमें उनका लक्ष्य सिर्फ जल चढ़ाना नहीं, बल्कि नई आध्यात्मिक अनुभूति पाना भी है।
लालटेन से शुरू हुई थी यात्रा
कृष्णा माता ने जब 42 साल पहले डाक यात्रा शुरू की थी, तब सुल्तानगंज-बाबा बैद्यनाथ कांवर पथ पर बिजली नहीं थी। वे लालटेन की रोशनी में कांवर उठाती थीं, और हर वर्ष बिना नागा बाबा को जल चढ़ाने जाती थीं। श्रद्धालुओं की भीड़ उनके चरण छूने को आतुर रहती थी। लोग उन्हें सिर्फ एक कांवरिया नहीं, बल्कि शिव भक्ति की प्रतीक मानते थे।
आस्था की प्रेरणा बन चुकी हैं
कृष्णा माता की कांवर यात्रा सिर्फ भक्ति नहीं, नारी शक्ति और साधना का प्रतीक भी बन चुकी है। उन्होंने कभी अपनी उम्र, परिस्थिति या शारीरिक कठिनाइयों को बाधा नहीं बनने दिया। वे खुद कांवर उठाती थीं, नियमों का पालन करती थीं और पूर्ण ब्रह्मचर्य के साथ डाक यात्रा पूरी करती थीं।
क्यों लिया यह निर्णय?
कृष्णा माता के अनुसार, “बाबा की सेवा कई रूपों में होती है। अब मेरी आत्मा एक नई साधना की ओर बुला रही है। इस बार मन Mahakal की ओर खिंच गया। नर्मदा जल से महाकाल को अभिषेक करने का संकल्प लिया है।” उन्होंने यह भी कहा कि भले ही वह डाक यात्रा से अलग हो रही हैं, लेकिन शिव सेवा और जनकल्याण की भावना से उनका जुड़ाव हमेशा रहेगा।