कांवड़ यात्रा में दिखा आत्मशुद्धि का अनोखा संकल्प, सुल्तानगंज से देवघर तक पैरों में बेड़ियां डालकर चला भक्त
श्रावण मास में सुल्तानगंज से देवघर तक होने वाली पवित्र कांवड़ यात्रा को आस्था, भक्ति और आत्मनियंत्रण का प्रतीक माना जाता है। हर वर्ष लाखों शिवभक्त गंगा जल लेकर "बोल बम" के जयघोष के साथ कांवड़िया पथ पर निकलते हैं। लेकिन इस बार जो दृश्य सामने आया, उसने न सिर्फ लोगों को हैरान किया, बल्कि श्रद्धा की परिभाषा को भी एक नया आयाम दे दिया।
इस बार यात्रा में एक ऐसा अद्भुत और प्रेरणादायक कांवड़िया नजर आया, जिसकी भक्ति न केवल अनूठी थी, बल्कि उसने कांवड़ यात्रा को आत्मशुद्धि और प्रायश्चित की मिसाल बना दिया। यह कांवड़िया पैरों में लोहे की बेड़ियां बांधकर सुल्तानगंज से देवघर की कठिन यात्रा पर निकला है।
बेड़ियों में बंधा संकल्प
इस भक्त की पहचान अभी तक सार्वजनिक नहीं हो सकी है, लेकिन जो भी उसे देख रहा है, वो उसकी साधना और संयम से अभिभूत हो रहा है। श्रद्धालु ने अपने पैरों में लोहे की जंजीरें डाली हुई हैं, और उन्हीं में बंधे-बंधे वह करीब 105 किलोमीटर लंबी दूरी तय कर रहा है। इस कठिन संकल्प का उद्देश्य – आत्मशुद्धि, प्रायश्चित और भगवान शिव से क्षमा याचना।
लोगों की श्रद्धा और संवेदना
भक्त की यह तपस्या देख कांवड़िया पथ पर चल रहे अन्य श्रद्धालु उसकी सहायता और सेवा में जुट गए हैं। कोई उसे पानी पिला रहा है, तो कोई उसे राह दिखा रहा है। हर पड़ाव पर लोग उसके पास रुककर प्रेरणा और शक्ति प्राप्त कर रहे हैं। बहुतों ने कहा कि ऐसे दृश्य शिवभक्ति को एक नई ऊंचाई पर ले जाते हैं।
यह यात्रा है तप, तितिक्षा और त्याग की
श्रावणी मेला और कांवड़ यात्रा सदियों से धार्मिक अनुशासन और संयम का प्रतीक रही है। लेकिन इस तरह की तपस्वी भक्ति यह बताती है कि आज भी आस्था केवल प्रदर्शन नहीं, आत्मसुधार का मार्ग भी है। यह कांवड़िया उन असंख्य भक्तों के बीच एक जीवंत उदाहरण बन गया है, जो कठिनाइयों में भी अपने विश्वास से डगमगाते नहीं।
प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्था भी सजग
इस विशेष भक्त की यात्रा को देखते हुए स्थानीय प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी सहयोग की पहल की है। उसे किसी प्रकार की चोट न लगे, इसके लिए लोग विशेष ध्यान दे रहे हैं। कांवड़ पथ पर मेडिकल कैम्प, पानी और छायादार विश्राम स्थल भी बनाए गए हैं।