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GAYA गयाजी में श्रीराम ने भी किया था पिंडदान, पितृपक्ष मेला पर इस साल हैं ये इंतजाम

 

बिहार न्यूज़ डेस्क !!! सनातन धर्मावलंबी देश-विदेश से हर साल लाखों की संख्या में यहां आते हैं।  मीडिया रिपेार्ट के अनुसार गयापाल पंडा महेश गुपुत बताते हैं, वैसे तो गयाजी में पूरे साल पिंडदान होता है, भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से आश्विन अमावस्या तक पितृपक्ष की अवधि होती है।सूत्रों के अनुसार बताया जा रहा है कि, विशेष महत्व है।आने के बाद श्रद्धालु पिंडदान व तर्पण करने के पूर्व तीर्थ पुरोहित गयापाल पंडा का चरण पूजन कर श्राद्ध करने की अनुमति लेते हैं।  अपने समय की सुविधा और क्षमता के अनुसार एक दिन से लेकर 17 दिनों तक का श्राद्धकर्म शुरूकरते हैं।गयाजी में पवित्र फल्गु में जलांजलि व विष्णुचरण पर पिंड अर्पित किया जाता है। गौरतलब है की , पौराणिक मान्यता है कि फल्गु की रेत और जल से पांव स्पर्श हो जाने पर भी पितर तृप्त हो जाते हैं।  भगवान राम ने भी अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। पितरों से जुड़ाव के कर्मकांड का पखवारा यानी पितृपक्ष।

सनातन आस्था और विश्वास का वह पावन समय, जब पंचतत्व में विलीन अपने पुरखों की आत्मा के मोक्ष के लिए पिंडदान व तर्पण अर्पण किया जाता है। इस साल पितृपक्ष 20 सितंबर से छह अक्टूबर तक है। गयाजी को मोक्षधाम कहा जाता है।  अतिरिक्त पांच कोस में 54 पिंडवेदियां अवस्थित, जहां श्रद्धालु कर्मकांड करते हैं। इन पिंडवेदियों में विष्णुपद के अतिरिक्त सीताकुंड, रामशिला, प्रेतशिला, धर्मारण्य, मंतगवापी व अक्षयवट प्रमुख हैं।  आपकी जानकारी के लिए बता दें कि,गयाजी में विभिन्न पिंडवेदियों पर अलग-अलग प्रकार के पिंड समर्पित किए जाते हैं। इनमें सबसे प्रचलित पिंड जौ के आटे, काले तिल, अरवा चावल और दूध से तैयार किया जाता है। यह गोलाकार होता है। पिंडदान में कुश का होना अनिवार्य है। प्रेतशिला पिंडवेदी स्थल पर सत्तू का पिंड उड़ाए जाने का विधान है। अंत में अक्षयवट पिंडवेदी पर खोवा का पिंडदान किया जाता है।धार्मिक मान्यता के अनुसार, विष्णुपद में प्रतिदिन एक पिंड का अर्पण करना अनिवार्य है। पिछले वर्ष पितृपक्ष मेले के कारण प्रतिबंध था। वैसे, गयापाल पंडा ने अपने-अपने पूर्वजों को पिंड अर्पित किया था। इस वर्ष राज्य सरकार ने कोरोना गाइडलाइन के तहत छूट देते हुए विष्णुपद मंदिर के पट खोल दिए हैं तो पितृपक्ष के दौरान श्रद्धालुओं का आना स्वाभाविक है।