बिहार में किस सीट से चुनाव लड़ेंगे चिराग पासवान? छपरा में किया बड़ा ऐलान, जेडीयू-बीजेपी की बढ़ेंगी मुश्किलें
लोजपा-आर के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान पिछले कुछ समय से बिहार की राजनीति में हलचल मचा रहे हैं। वे लगातार ऐसे बयानों और राजनीतिक गतिविधियों में लगे हुए हैं, जो राजनीति के गलियारों में विवाद और सवालों को जन्म दे रहे हैं। पिछले महीने से वे शाहाबाद के भोजपुर, सारण और अन्य जिलों में सभाएं कर रहे हैं और हर बार अपने भाषणों में विधानसभा की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं।
चिराग पासवान की यह बात एनडीए के समर्थकों के लिए एक बड़ा सवाल बन गई है। वे कन्फ्यूज हैं कि जब चिराग सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे तो फिर एनडीए के दूसरे घटक दलों का क्या होगा? आखिरकार गठबंधन में सीटों का बंटवारा अहम होता है और चिराग की इस घोषणा से सहयोगी दलों में असमंजस की स्थिति बन गई है।
चिराग खुद को 'शेर का बेटा' बताते हुए कहते हैं कि वे किसी से नहीं डरते और बिहार को विकसित करने के लिए अंतिम दम तक संघर्ष करेंगे। उनका कहना है कि इसके लिए उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका मिलना चाहिए। लेकिन इस बीच वे यह भी स्वीकार करते हैं कि फिलहाल मुख्यमंत्री पद खाली नहीं है, जिससे साफ नहीं हो पाता कि उनकी रणनीति और अंतिम लक्ष्य क्या है।
चिराग को मिली पार्टी में खास प्राथमिकता
चिराग पासवान के बारे में यह बात भी चर्चा में है कि उन्हें भाजपा ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी और अपने चाचा पशुपति कुमार पारस की अपेक्षा उन्हें अधिक तरजीह दी। इससे यह जाहिर होता है कि भाजपा के लिए चिराग पासवान महत्वपूर्ण सहयोगी हैं। ऐसे में चिराग द्वारा 'डरने-डराने' वाली बात करना मुख्य रूप से अपनी पार्टी की सीटों की मांग को लेकर दबाव बनाने का तरीका माना जा रहा है।
पार्टी स्तर पर भी चिराग की महत्वाकांक्षा साफ नजर आती है। लोजपा-आर की प्रदेश कार्यकारिणी और अन्य अनुषंगी मंचों पर उनके विधानसभा चुनाव लड़ने के प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं और पार्टी ने चिराग को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित किया है। लेकिन एनडीए के बाकी सहयोगी दल इस पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दे सके हैं।
राजनीति की पेचीदगियां और चिराग की रणनीति
चिराग पासवान की इस स्थिति को समझना राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी चुनौती बना हुआ है। वे सच में बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर लड़ना चाहते हैं या यह केवल एक रणनीतिक बयानबाजी है ताकि चुनावी बंटवारे में अधिक से अधिक सीटें हासिल कर सकें?
चिराग की इस रणनीति से यह भी लगता है कि वे गठबंधन में अपनी महत्ता जताने और भाजपा सहित अन्य सहयोगी दलों को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी मांगों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। साथ ही, वे अपने राजनीतिक दबदबे को मजबूत करने की भी कोशिश कर रहे हैं ताकि आगामी चुनाव में उनकी पार्टी की स्थिति मजबूत बने।