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बचपन की क्रोशिया नौका से NDA तक, कैडेट हरिनी राघवेंद्रन की प्रेरक यात्रा

 

बचपन में हम सबने कभी न कभी कागज़ पर आकाश, पहाड़, नाव या सपनों का कोई दृश्य उकेरा है। ज़्यादातर चित्र वहीं रह जाते हैं—कॉपी के एक पुराने पन्ने पर। लेकिन कभी-कभी वही कल्पना आगे चलकर जीवन की दिशा तय कर देती है। ऐसी ही प्रेरक कहानी है एनडीए कैडेट हरिनी राघवेंद्रन की, जिनकी बचपन की एक कलात्मक कल्पना ने उन्हें राष्ट्रसेवा की राह पर पहुँचा दिया।

एक चित्र जो सपना बन गया

करीब चार साल पहले हरिनी ने क्रोशिया (crochet) तकनीक से एक पुरानी शैली की नौका की खूबसूरत थ्री-डी कलाकृति तैयार की थी। उनके परिवारजन बताते हैं कि वह नौका जब कमरे की शोकेस में रखी गई तो ऐसा लगता था जैसे हवा के झोंकों से समुद्री लहरों पर दौड़ रही हो। उसी दिन से घर में मज़ाक-मज़ाक में कहा जाने लगा—“हरिनी अपनी नाव खुद बनाएगी और खुद उसे दौड़ाएगी।” किसी ने नहीं सोचा था कि यह पंक्ति रूपक बनकर सच के इतना क़रीब पहुँच जाएगी।

अनुशासन, पढ़ाई और लक्ष्य

हरिनी ने स्कूल के दिनों से ही विज्ञान, गणित और खेल—तीनों पर बराबर ध्यान दिया। परिवार का कहना है कि वह “डू-इट-योरसेल्फ” स्वभाव की रही हैं—कुछ बनाना, जोड़ना, सुधारना उन्हें भाता था। यही व्यवहारिक जिज्ञासा आगे चलकर रक्षा सेवाओं को एक स्वाभाविक लक्ष्य में बदलती गई। एनडीए की कठिन चयन प्रक्रिया—लिखित परीक्षा, एसएसबी इंटरव्यू, मनोवैज्ञानिक व शारीरिक परीक्षण—के लिए उन्होंने लंबी तैयारी की।

एनडीए कैडेट बनने का क्षण

चयन सूची में नाम आते ही घर में खुशी का माहौल छा गया। क्रोशिया वाली वह नाव फिर से चर्चा में आई—परिवार ने उसे “हार्बर से निकलती पहली जहाज़” की तरह प्रतीकात्मक मानकर सहेज लिया। हरिनी का कहना है कि उस छोटी-सी कलाकृति ने उन्हें यह विश्वास दिया कि धैर्य, धागा और धुन—तीनों मिलें तो किसी भी सपने को आकार दिया जा सकता है।

बेटियों के लिए संदेश

हरिनी मानती हैं कि सपनों की कोई तय उम्र नहीं और न ही लिंग की कोई बंदिश। “अगर आपने बचपन में कुछ बनाने, उड़ने, तैरने या नेतृत्व करने के बारे में सोचा था, तो उसे याद कीजिए। वही आपका असली कम्पास है,” वे अक्सर जूनियर छात्रों से कहती हैं। विशेषकर लड़कियों को वे खेल, शारीरिक फिटनेस और नेतृत्व गतिविधियों में आगे आने को प्रेरित करती हैं।

परिवार और समुदाय का गर्व

पड़ोसियों के अनुसार, हरिनी का चयन आसपास के बच्चों के लिए रोल मॉडल बन गया है। स्कूल ने उनकी कलात्मक नौका को प्रेरक प्रदर्शनी का हिस्सा बनाने का प्रस्ताव दिया है, ताकि छात्र समझें कि रचनात्मकता और अनुशासन साथ चल सकते हैं।

निष्कर्ष: हरिनी राघवेंद्रन की कहानी बताती है कि बचपन की छोटी-सी रचना भी जीवन की बड़ी दिशा का बीज बन सकती है। जिस क्रोशिया नौका ने कल्पना की लहरों पर बहना शुरू किया था, वही अब राष्ट्र सेवा की असली यात्रा का प्रतीक बन चुकी है। अगर आपके घर के किसी दराज में बचपन का कोई अधूरा चित्र पड़ा है—तो हो सकता है, वह भी आपका भविष्य खींचने को तैयार हो।