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जातीय समीकरणों पर टिकी चुनावी बिसात, हर दल अपनी-अपनी जातीय गोलबंदी में जुटा

 

बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव का बिगुल अभी आधिकारिक रूप से नहीं बजा है, लेकिन राजनीतिक तापमान तेजी से चढ़ता जा रहा है। चुनावी रणनीतियों की बुनियाद जहां विकास, रोजगार और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर टिकी होनी चाहिए, वहीं बिहार की राजनीति की पहचान — जातीय समीकरण — एक बार फिर केंद्र में आ गई है।

बिहार में "जाति बिहार से जाती नहीं"—यह कहावत अब भी उतनी ही सटीक है, खासकर जब चुनाव नजदीक हों। राज्य के सभी प्रमुख राजनीतिक दल जातीय आधार पर वोट बैंक को साधने में जुटे हैं और जाति-उपजाति आधारित सम्मेलन, जनसभाएं और सामाजिक भोज जैसे आयोजन धड़ल्ले से किए जा रहे हैं।

कौन किसके साथ?

राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी जातिगत मजबूती के हिसाब से लक्षित जनसमूह को जोड़ने की प्रक्रिया तेज कर दी है। आइए समझते हैं कि बिहार में किस जाति का झुकाव किस दल की ओर देखा जा रहा है:

1. यादव और मुस्लिम वोटर

  • यह सामाजिक समीकरण राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की रीढ़ रहा है।

  • तेजस्वी यादव के नेतृत्व में यह वोट बैंक अभी भी RJD के साथ मजबूती से खड़ा दिखता है।

  • मुस्लिम समुदाय का कुछ हिस्सा कांग्रेस और वाम दलों की ओर भी झुका है, लेकिन प्रमुख भरोसा अब भी RJD पर है।

2. सवर्ण (ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ, भूमिहार)

  • सवर्णों का बड़ा हिस्सा परंपरागत रूप से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ जुड़ा रहा है।

  • हालांकि हालिया दिनों में राजपूत और भूमिहार समुदाय की नाराजगी के सुर भी देखने को मिले हैं, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा अभी भी NDA के साथ खड़ा है।

3. कुर्मी और कोइरी (कृषक जातियां)

  • इन जातियों का झुकाव नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) की ओर रहा है।

  • कुर्मी समुदाय नीतीश कुमार का मूल वोट बैंक माना जाता है, जबकि कोइरी वोटरों का एक बड़ा वर्ग अभी भी उनके साथ बना हुआ है, हालांकि कुछ वर्ग BJP और RJD की ओर भी झुकाव दिखा रहे हैं।

4. दलित और महादलित समुदाय

  • दलित समुदाय का वर्ग विभाजित है:

    • पसवान समुदाय का बड़ा हिस्सा LJP (रामविलास) और चिराग पासवान के साथ है।

    • महादलितों में से कुछ हिस्सा JDU के साथ, जबकि कुछ RJD और कांग्रेस के साथ भी जुड़ता दिख रहा है।

  • चिराग पासवान युवाओं में आक्रामक शैली के कारण खासे लोकप्रिय हैं, जो उनके पक्ष में जातीय गोलबंदी को मजबूत कर सकता है।

5. अति पिछड़ा वर्ग (EBC)

  • यह वर्ग अभी चुनावी दृष्टि से सबसे निर्णायक माना जा रहा है।

  • EBC वर्ग का झुकाव पहले JDU की ओर था, लेकिन हाल के राजनीतिक समीकरणों के चलते यह बंटी हुई स्थिति में है और कई दल इस वर्ग को रिझाने में लगे हैं।

जातीय सम्मेलन और सामाजिक भोज

सभी दलों ने जातीय गोलबंदी को ध्यान में रखते हुए जातिगत सम्मेलन, सम्मान समारोह, सामाजिक भोज, और शक्ति प्रदर्शन रैलियों का आयोजन तेज कर दिया है। राजद की ओर से "यादव-सेना सम्मेलन", BJP की ओर से "सवर्ण गौरव यात्रा", JDU द्वारा "महादलित संवाद", और चिराग पासवान के "दलित अधिकार मंच" जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं।