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बिहार की 100 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे चंद्रशेखर...कर दिया बड़ा ऐलान, यहां समझिए दलित वोट का पूरा गणित

 

बिहार में डिजिटली के लिए जंग कूड़ा हुआ है। वजीरों और शिष्यों ने अपना जोर रखा है। हालाँकि 'हम' वाले में जीतन राम आसामी की पार्टी और रामविलास (रामविलास) वाले चिराग पासवान के बीच टशन देखने को मिल रहा है। दूसरी ओर, किसी भी तरह के मुस्लिमों के लिए सबसे अच्छा मौका है, जो मुसलमानों के हितैषी होने का दावा करता है। इस बीच बिहार की राजनीति में एक नया बदलाव आया है, भीम आर्मी के प्रमुख और आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने विधानसभा चुनाव में उतार का खुलासा किया है. पिछले कुछ वर्षों में चन्द्रशेखर की छवि एक आक्रामक, मुखर और संघर्षशील युवा नेता के रूप में उभरी है। ऐसे में कहा जा रहा है कि ये फैसला उनके दलित राजनीति के भविष्य को प्रभावित कर सकता है.

राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर शायर एस वानखेड़े ने अपने एक लेख में कहा है कि चुनावी महत्व के बावजूद, दलित बिहार में आर्थिक अभाव और सामाजिक विषमताओं में कमी आई है, जबकि उनका राजनीतिक प्रभाव उप-जातिगत डिविजनों और नेतृत्व के कारण टूट गया है। सवाल ये है कि इस बराकाव को एकजुटता में बदल दिया जाएगा!

विश्राम, असोसियेंट, आशुतोष के बीच चन्द्रशेखर की भूमिका

बिहार में दलित राजनीति अब तक पट्टपति और जीतन राम वसीयत जैसे नेता-गिरफ्तार घूमती रहती है। लेकिन अब दस्तावेज़ पासपोर्ट नहीं रह गया है और स्टॉक में टूट-फूट हो गई है। वहीं, अचूक की भूमिका सीमित होती जा रही है। इस परिस्थिति में चन्द्रशेखर के मठ में एक वैकल्पिक नेतृत्व का संकेत है। बिहार में डिजिटल समूह की संख्या लगभग 20 प्रतिशत है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा रविदास और पासवान समाज का है। कुल दलित वोटों में 31 फीसदी रविदास हैं तो 30 फीसदी फीसदी या दुसाध हैं, जबकि मुसहर या हिटलर करीब 14 फीसदी हैं. बिहार में किले की 38 सीटें हैं, जिसमें 21 सीटें और 17 सीटें शामिल हैं।

बिहार में चिराग़ असैन या जीतन राम आसामी जो कि कथित तौर पर दलित राजनीति के सूत्रधार बने हुए हैं। इसके अलावा कुछ बराक ओबामा की पार्टी (बसपा) का भी प्रभाव है। हालाँकि। नियुक्तियाँ हैं कि चन्द्रशेखर थोड़ी मेहनत में रखी गई हैं तो आशुतोष का विकल नामांकित बन सकते हैं, जैसा कि प्रयास किया गया है कि धर्मशाला उत्तर प्रदेश में जारी है।

यूपी से ब्यूटीफुल बुलेट में आशुतोष का प्रभाव

बसपा का प्रभाव सीमित रूप से सीमित है, विशेष रूप से पूर्वी एशिया में जो उत्तर प्रदेश से बचे हुए हैं, जैसे बिहार के कैमूर, बक्सर और रोहतास के कुछ क्षेत्र जैसे चैनपुर, मोहनिया, त्रिपुरा, भभुआ, बीकानेर जैसे जिलों में बीएसपी का असर दिख रहा है। भले ही बीएसपी ने बहुत बढ़त न बनाई हो, लेकिन कई जगहों पर हार-जीत में उसकी भूमिका बढ़ रही है। लगभग हर चुनाव में बसपा की बहुजन समाज पार्टी अपने उम्मीदवार उतारती है और 4 से 5 उम्मीदवार जीत भी जाते हैं। ये अलग बात है कि बाद में उन्हें बड़ी फ्लाइट हाईजैक मिल जाएगी. अब चन्द्रशेखर आज़ाद हैं, इसी स्थान पर कब्ज़ा करने के लिए बिहार में उतर रहे हैं।

बसपा की स्थिति 2020 से बहुत अलग

बीएसपी ने साफ कहा कि वह ना लड़ेंगी, ना इंडिया गठबंधन में, अकेले चुनावी मैदान में उतरेंगी। इस घोषणा से AIMIM यानी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन प्रमुख असदुद्दीन सोसा के सीमांत मोर्चा बनाने की पहल को बड़ा झटका लगा है। 2020 के विधान सभा चुनाव में बसपा ने ओवैसी के इमाम और अन्य छोटे आश्रम समूहों के साथ मिलकर 'ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक कम्युनिस्ट फ्रंट' (जीडीएसएफ) के बैनर तले चुनाव लड़ा था। इस मोर्चे में दशहरा की आरएलएसपी, ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा, संजय चौहान की जनवादी पार्टी और एसजेडीडी शामिल थे, लेकिन नतीजे निराशाजनक रहे।

ओसाकी की पार्टी को जहां 5 सीटें मिलीं, वहीं बीएसपी को एक सीट मिली। अन्य दल खाता तक नहीं खुला। समाजवादी पार्टी के 5 सदस्यों में से 4 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। आज एआईएमआईएम के पास सिर्फ एक विधायक अख्तरुल ईमान बचे हैं, जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, जो अभी भी प्रयास में लगे हुए हैं।

बोस्निया, कांग्रेस, असैनिक को चुनौती दे सकते हैं चन्द्रशेखर

चन्द्रशेखर, पारंपरिक परम्परागत को भी चुनौती दे सकते हैं। जैसे निजीकरण, बैडमिंटन और कांग्रेस की सदस्यता, जो अब तक दलित वोट बैंक को अपने-अपने तरीकों से साधती रही हैं, उनके लिए वोट एक चुनौती बन सकते हैं। विशेष रूप से यदि वे दलित- मुस्लिम एकता के फार्मूले पर काम करते हैं तो सामाजिक अनुपात में बदलाव संभव है।

ऋषि वानखेड़े के अनुसार, दलित एक महत्वपूर्ण चुनावी गुट है और ये बिहार के 15% खंडों के कई खंडों को प्रभावित करते हैं। अगर शेखर इन रेस्टॉरेंट पर कंसल्टेंट को एकजुट नहीं कर पाए तो भी यह तय है कि चुनाव में वैलिडिटी कंसल्टेंट का बिखराव होगा। ऐसी एक संभावना यह भी है कि भाजपा को भी आश्रम की तरह आश्रम का लाभ मिल सकता है।