देश की मजबूती में बिहार की भूमिका अहम, राज्य का सशक्त होना है राष्ट्र की मजबूती की आधारशिला
देश के समग्र विकास और लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती के लिए राज्यों की सक्रिय भागीदारी बेहद आवश्यक है। इसी क्रम में बिहार का योगदान हमेशा से ऐतिहासिक और निर्णायक रहा है। "देश की मजबूती के लिए राज्य का सशक्त होना जरूरी है," यह विचार केवल एक राजनैतिक वक्तव्य नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की सच्चाई है — और इस सच्चाई में बिहार का उल्लेखनीय स्थान रहा है।
इतिहास गवाह है कि बिहार ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई, बल्कि स्वतंत्र भारत के सामाजिक, राजनीतिक और बौद्धिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। चंपारण सत्याग्रह से लेकर जेपी आंदोलन तक, बिहार की धरती ने देश को कई निर्णायक मोड़ दिए हैं।
लोकतंत्र की धुरी बना बिहार
बिहार भारतीय लोकतंत्र की प्रयोगशाला रहा है। यहां से निकले नेताओं ने संसद से सड़क तक आमजन की आवाज को मुखर किया। जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति आंदोलन हो या कर्पूरी ठाकुर की समाजवादी नीतियां — इन सबने देश की राजनीति को एक नई दिशा दी।
बिहार के सशक्त होने का अर्थ सिर्फ आर्थिक या भौतिक विकास नहीं, बल्कि शिक्षा, सामाजिक न्याय, जनभागीदारी और राजनीतिक चेतना में मजबूती भी है। जब बिहार का युवा जागरूक होता है, तो उसका असर दिल्ली तक दिखाई देता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी अहम भूमिका
आज जब देश ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तब बिहार जैसे राज्यों की भूमिका और भी अहम हो जाती है। केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर अगर शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, और रोजगार जैसे क्षेत्रों पर गंभीरता से काम करें, तो बिहार देश की आर्थिक धुरी बन सकता है।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि बिहार की जनशक्ति और श्रमशक्ति देश के विभिन्न हिस्सों में आर्थिक विकास में योगदान दे रही है। दिल्ली, मुंबई, पंजाब, हरियाणा, गुजरात— हर राज्य में बिहारी मजदूरों, इंजीनियरों, डॉक्टरों और अफसरों की मेहनत झलकती है।