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Bihar News: आधार, वोटर ID और राशन कार्ड को चुनावी रजिस्टर में शामिल करने से चुनाव आयोग का इनकार; एफिडेविट में क्या वजह बताई

 

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर चुनाव आयोग ने एक अहम फैसला लिया है, जिससे राजनीतिक दलों और आम जनता को बड़ा झटका लगा है। चुनाव आयोग ने आधार कार्ड, वोटर ID और राशन कार्ड को चुनावी रजिस्टर में शामिल करने से मना कर दिया है। इसके लिए चुनाव आयोग ने एफिडेविट में स्पष्ट तौर पर अपनी वजह बताई है।

क्या है आयोग का फैसला?

चुनाव आयोग ने कहा कि इन दस्तावेजों को चुनावी रजिस्टर में शामिल करना संवैधानिक रूप से सही नहीं होगा। आयोग ने यह तर्क दिया कि ये दस्तावेज चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने के लिए वैध पहचान के रूप में काम नहीं कर सकते, क्योंकि इनमें से कई दस्तावेजों की समानता और प्रामाणिकता पर सवाल उठ सकते हैं।

एफिडेविट में आयोग ने बताया कि इन दस्तावेजों का इस्तेमाल केवल पहचान प्रमाण के रूप में हो सकता है, लेकिन चुनावी रजिस्टर में इनका उपयोग आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता। चुनाव आयोग के अनुसार, चुनाव आयोग का मुख्य उद्देश्य सिर्फ सही मतदाता को पहचानना और उसकी हक को सुरक्षित करना है।

आधार और राशन कार्ड के मुद्दे पर आयोग का तर्क

आधार कार्ड में जन्मतिथि और पहचान की जानकारी होती है, लेकिन यह केंद्र सरकार के द्वारा जारी किया गया एक दस्तावेज है, जो अन्य सरकारी योजनाओं से जुड़ा हुआ है, जैसे राशन वितरण और बैंक खाता। इसी तरह वोटर ID और राशन कार्ड की पहचान के मुद्दे में भी कुछ भ्रम हो सकता है, क्योंकि यह बहुत सीमित डेटा उपलब्ध कराते हैं। चुनाव आयोग ने इस बात को लेकर चिंता व्यक्त की है कि इन दस्तावेजों से चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी हो सकती है।

क्यों जरूरी था ये बदलाव?

राजनीतिक दलों ने लंबे समय से यह मांग की थी कि आधार कार्ड, वोटर ID और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को चुनाव रजिस्टर में शामिल किया जाए, ताकि गलत तरीके से मतदाताओं की पहचान में कोई गड़बड़ी न हो। इन दस्तावेजों को चुनावी रजिस्टर में शामिल करने से नकली वोटिंग और गलत पहचान के मामलों को रोका जा सकता था।

आयोग का रुख और भविष्य में क्या?

हालांकि, चुनाव आयोग का यह कदम आधिकारिक पहचान और चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता को बनाए रखने के उद्देश्य से है, लेकिन इस फैसले के बाद कई राजनीतिक दलों और नेताओं द्वारा चुनाव आयोग के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं। वे इसे जनता की पहचान को सही तरीके से पहचानने में एक रुकावट मानते हैं।