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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान शुरू, वोटर पहचान के लिए इन 11 दस्तावेजों में से देना होगा कोई एक

 

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी जोरों पर है। चुनाव से पहले भारत निर्वाचन आयोग ने राज्य में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान शुरू कर दिया है। इस अभियान के तहत नए मतदाताओं का नाम जोड़ा जाएगा, पुराने रिकॉर्ड में सुधार किया जाएगा और अपात्र नामों को हटाया जाएगा। इस प्रक्रिया में भाग लेने के लिए नागरिकों को आयोग द्वारा स्वीकृत 11 पहचान दस्तावेजों में से कोई एक दस्तावेज बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) को संबंधित प्रपत्र के साथ जमा करना होगा।

इस संबंध में प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) ने एक आधिकारिक जानकारी जारी की है, जिसमें उन 11 दस्तावेजों की सूची साझा की गई है जिन्हें मतदाता पहचान के रूप में मान्य किया गया है।

📌 मान्य पहचान दस्तावेजों की सूची:

  1. आधार कार्ड

  2. पासपोर्ट

  3. ड्राइविंग लाइसेंस

  4. पैन कार्ड

  5. राज्य/केंद्र सरकार द्वारा जारी फोटोयुक्त सेवा पहचान पत्र

  6. बैंक/डाकघर की पासबुक जिसमें फोटो हो

  7. मनरेगा जॉब कार्ड

  8. हेल्थ इंश्योरेंस स्मार्ट कार्ड (आरएसबीवाई/आयुष्मान भारत योजना)

  9. शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए जारी फोटोयुक्त पहचान पत्र

  10. शैक्षणिक संस्थानों द्वारा जारी फोटो युक्त प्रमाण पत्र (छात्रों के लिए)

  11. जन्म तिथि का प्रमाण पत्र (जन्म प्रमाण पत्र या 10वीं की मार्कशीट)

📅 यह है प्रक्रिया

  • मतदाता सूची में नाम जुड़वाने, सुधार करवाने या विलोपन के लिए निर्धारित प्रपत्र (Form-6, 6A, 7, 8 आदि) भरना होगा।

  • साथ ही उपरोक्त दस्तावेजों में से कोई एक प्रमाण बीएलओ को जमा करना अनिवार्य होगा।

  • बीएलओ घर-घर जाकर इस प्रक्रिया को पूरा कर रहे हैं, साथ ही मतदाता अपने नजदीकी मतदान केंद्र पर जाकर भी दस्तावेज जमा कर सकते हैं।

🗳️ चुनावी तैयारी का अहम हिस्सा

विशेष पुनरीक्षण अभियान आगामी विधानसभा चुनावों की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। निर्वाचन आयोग का उद्देश्य है कि हर पात्र मतदाता का नाम सूची में दर्ज हो और कोई अपात्र व्यक्ति सूची में न रहे।

🔍 विपक्ष का ऐतराज, लेकिन आयोग की प्रक्रिया जारी

हालांकि, इस प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक हलकों में बहस भी शुरू हो गई है। विपक्षी दलों का आरोप है कि यह पुनरीक्षण केवल बिहार में क्यों किया जा रहा है, जबकि आयोग इसे एक नियमित और संवैधानिक प्रक्रिया करार दे रहा है।