क्या फिर से होगी नोटबंदी? चंद्रबाबू नायडू ने 500 रुपये के नोट को लेकर कह दी ये बड़ी बात
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने एक बार फिर अपनी स्पष्ट और साहसिक नीतियों को लेकर चर्चा में हैं। आजतक को दिए एक इंटरव्यू में नायडू ने भ्रष्टाचार पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि बड़ी करेंसी नोट्स को पूरी तरह से बंद किया जाना चाहिए। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि 500 रुपये के नोट की भी अब कोई जरूरत नहीं है और उसे भी प्रचलन से हटाया जाना चाहिए। नायडू का मानना है कि भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए नकद लेन-देन को सीमित करना और डिजिटल इकोनॉमी को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है। उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब देश में भ्रष्टाचार, काले धन और फ्रीबीज कल्चर को लेकर राजनीतिक और सामाजिक बहसें जोरों पर हैं।
बड़ी करेंसी खत्म होगी तो बंद होगा भ्रष्टाचार
मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अपने इंटरव्यू में कहा, "अगर देश को भ्रष्टाचारमुक्त बनाना है तो बड़ी करेंसी नोट्स को समाप्त करना होगा। 500 रुपये के नोट की भी जरूरत नहीं है। लेन-देन 100 और 200 रुपये या उससे कम के नोटों में ही होना चाहिए। इससे ना केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि काले धन पर भी अंकुश लगेगा।" उनके इस बयान को लेकर विशेषज्ञों के बीच बहस छिड़ गई है। कुछ इसे एक व्यावहारिक सुझाव मान रहे हैं, तो कुछ इसे डिजिटल इकोनॉमी के रास्ते में अहम कदम कह रहे हैं।
फ्रीबीज कल्चर पर भी रखी राय, कल्याणकारी योजनाओं का समर्थन
राजनीतिक दलों द्वारा दी जा रही मुफ्त योजनाओं को लेकर पूछे गए सवाल पर चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि "फ्रीबीज शब्द ही गलत है। समाज में हर वर्ग की जरूरतें अलग होती हैं और कल्याणकारी योजनाएं उन जरूरतों को पूरा करने का माध्यम होती हैं।" उन्होंने अपने ससुर और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन. टी. रामाराव का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने भी कई लाभकारी योजनाएं शुरू की थीं जो गरीबों के लिए वरदान साबित हुईं। नायडू का कहना है कि “कल्याण योजनाएं सार्थक हों और उनकी डिलीवरी प्रभावी तरीके से हो, तभी उनका लाभ समाज को सही मायनों में मिल सकता है।”
जातिगत और स्किल आधारित जनगणना को बताया जरूरी
जनगणना को लेकर पूछे गए सवाल पर नायडू ने स्पष्ट रूप से कहा कि देश को केवल जातिगत नहीं, बल्कि स्किल और आर्थिक आधार पर भी जनगणना करनी चाहिए। उनका मानना है कि "आज के दौर में डेटा सबसे बड़ी ताकत बन चुका है। अगर हर नागरिक की पूरी जानकारी सरकार के पास हो तो पब्लिक पॉलिसी को ज़मीन पर बेहतर तरीके से लागू किया जा सकता है।" उन्होंने कहा कि बिहार, कर्नाटक, तेलंगाना और अब आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में इस दिशा में पहल हो चुकी है। केंद्र सरकार द्वारा देशव्यापी जातिगत जनगणना को मंजूरी दिए जाने पर उन्होंने संतोष जताया।
हिंदी भाषा को लेकर रखी संतुलित सोच
एक दक्षिण भारतीय नेता होने के बावजूद चंद्रबाबू नायडू हिंदी भाषा को लेकर एक संतुलित और प्रगतिशील सोच रखते हैं। उन्होंने कहा, "स्थानीय भाषा का सम्मान होना चाहिए, चाहे वह तेलुगु, तमिल या कन्नड़ हो। मातृभाषा से समझौता नहीं किया जा सकता, लेकिन साथ ही हिंदी सीखना भी कोई बुरी बात नहीं है।" उनका मानना है कि हिंदी सीखने से राष्ट्रीय स्तर पर संवाद की बेहतर संभावनाएं बनती हैं। उन्होंने कहा कि "उत्तर भारतीयों से संवाद करने के लिए अगर हम हिंदी बोलना जानते हैं, तो यह एक अतिरिक्त योग्यता है, नुकसान नहीं।"
अमरावती और हैदराबाद को बताया भविष्य के ग्लोबल शहर
अमरावती ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट को लेकर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर भी नायडू ने जवाब दिया। उन्होंने कहा, "विजन रखने वाले नेताओं को हमेशा विरोध का सामना करना पड़ता है। जब मैंने हैदराबाद का विकास शुरू किया था, तब भी मुझ पर सवाल उठे। लेकिन कुछ ही महीनों में मैंने वहां पानी पहुंचाया, निवेशकों को बुलाया और एक नया शहर खड़ा किया।" नायडू ने भविष्य को लेकर कहा, "मैं पूरे विश्वास से कहता हूं कि आने वाले समय में अमरावती और हैदराबाद भारत के नंबर 1 और नंबर 2 ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने वाले शहर बनेंगे।"
निष्कर्ष
एन. चंद्रबाबू नायडू के विचार आज की राजनीति में एक अलग दृष्टिकोण को सामने लाते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी कड़ी नीति, डिजिटल इकोनॉमी का समर्थन, सामाजिक समानता की वकालत और राष्ट्रीय एकता के प्रति लचीला रवैया उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में प्रस्तुत करता है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी ये नीतियां किस हद तक देश की राजनीति और प्रशासनिक ढांचे को प्रभावित करती हैं।