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BJP की सहयोगी TDP को क्यों नहीं रास आ रहा SIR? जताई आपत्ति और पूछे ये सवाल

 

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले जनजातीय सूची में पुनरीक्षण कार्य को लेकर तूफान मच गया है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। व्यावसायिक दल इस मुद्दे पर लगातार केंद्र सरकार के साथ ही चुनाव आयोग को घेर रहे हैं। इन सबके बीच अब वंदे के मुख्य सहयोगी दल तेलुगू देशम पार्टी (टीआईपी) के रुख ने सरकार को चौंका दिया है। टीआईपी ने आंध्र प्रदेश में विशेष गहन पुनरीक्षण (आसमआर) के लिए स्वायत्त समय देने का आग्रह किया है। माना जा रहा है कि इस टी-डीपी की मांग से बीजेपी का सिरदर्द बढ़ सकता है।

टीआईपी का कहना है कि इसे छह महीने के अंदर किसी भी बड़े चुनाव में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही नवीनतम मॉडलों की सूची में पहले से नामांकित लाकेज़ को अपनी पहचान पुनः स्थापित करना आवश्यक नहीं है। पार्टी के एक इलेक्ट्रोनिक ने कहा कि एस मजबूत का उद्देश्य स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए। साथ ही कलाकार सूची में सुधार और समावेशन तक सीमित होना चाहिए। यह स्पष्ट रूप से सूचित किया जाना चाहिए कि यह प्रैक्टिस बैचलर सर्टिफिकेट से संबंधित नहीं है, और किसी भी क्षेत्र के निर्देशों में यह अंतर होना चाहिए।

एस का उद्देश्य स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए और सूची में सुधार और समावेशन तक सीमित होना चाहिए। यह स्पष्ट रूप से सूचित किया जाना चाहिए कि यह प्रैक्टिस बैचलर सर्टिफिकेट से संबंधित नहीं है, और किसी भी क्षेत्र के निर्देशों में यह अंतर होना चाहिए। प्रमाण का भार ईआरओ (निर्वाचन रजिस्टर अधिकारी) या चरित्रकारिता पर होता है, भगवान पर नहीं, जब नाम आधिकारिक सूची में मौजूद हो।

गठबंधन के भीतर?

तेलुगू देशम पार्टी के कलाकारों की सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के लिए अधिक समय दें और इसे नागरिकता नामांकन से अलग करने के लिए मांग करें कि बीजेपी और जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की रणनीति पर कई तरह के प्रभाव पड़ सकते हैं। टीडीपी का यह रुख, खास तौर पर बिहार के जंगलों में चल रहे एसआईआर के संदर्भ में, एनडीए के अंदर और बाहर दोनों जगह कुछ खास पेश किया जा सकता है।

टीआईपी, व्ही की दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी है। टीआईपी के पास 2024 के आम चुनाव में 16 प्रवेश हैं। इसके सर पर सवाल उठाए गए और प्रक्रिया में बदलाव की मांग करने के लिए गठबंधन के पहलुओं को शामिल किया जा सकता है। यह भाजपा के लिए एक चुनौती हो सकती है, क्योंकि उसे अपने सहयोगियों को एकजुट रखने की जरूरत है, खासकर तब जब वह 240 के साथ अपने दम पर बहुमत से 32 सदस्यों के पीछे है।

बौद्ध धर्म में पार्टी पर हमले का मौका

चंद्रबाबू नायडू की पार्टी ने एसआईआर को रेज़्यूमे बनाने, इसे नागरिकता प्रमाणपत्र से अलग करने, और नागरिकता हटाने की प्रक्रिया में स्पष्टता की मांग की है। यह मांग भाजपा को अपनी रणनीति पर स्थिर करने और सहयोगियों के साथ नीतिगत समन्वय बढ़ाने के लिए मजबूर कर सकती है। अगर बीजेपी टीआईपी की पार्टी को मंजूरी मिलती है, तो इससे गठबंधन में तनाव बढ़ सकता है।

टीआईपी की मांग वाले इंस्टीट्यूट, विशेष रूप से कांग्रेस और भारत गठबंधन को बीजेपी पर हमला करने का मौका मिल सकता है। कांग्रेस ने सबसे पहले सर को 'चुनावी ताकत' का प्रयास बताया है। अगर टीडीपी और बीजेपी के बीच इस मुद्दे पर समानता बढ़ रही है, तो इसे एनडीए के अंदर असहमति के रूप में पेश किया जा सकता है, जिससे बीजेपी की छवि को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, यदि एसआईआर की प्रक्रिया में देरी होती है या इसे बदला जाता है, तो इसे अपनी जीत के रूप में प्रचारित किया जा सकता है, जिससे बीजेपी की रणनीति में गिरावट आ सकती है।