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विश्व चैंपियनशिप में कांस्य से चिराग-सात्विक का मनोबल बढ़ा, ओलंपिक न पहुंच पाने की कर दी भरपाई

 

भारतीय बैडमिंटन के लिए बीता सप्ताह गौरव का रहा। पुरुष युगल जोड़ी चिराग शेट्टी और सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी ने पेरिस में आयोजित विश्व चैंपियनशिप 2025 में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। इस जीत से न केवल भारतीय बैडमिंटन को मजबूती मिली है बल्कि खिलाड़ियों के आत्मविश्वास में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है।

पदक जीतने के बाद चिराग शेट्टी ने कहा कि इस उपलब्धि से उन्हें और सात्विक को काफी हद तक उस कसक से राहत मिली है, जो एक साल पहले पेरिस ओलंपिक 2024 में पोडियम तक नहीं पहुंच पाने के कारण उनके मन में रह गई थी। उन्होंने कहा, “ओलंपिक में पदक से चूकना हमारे लिए बड़ी निराशा थी। लेकिन विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतना हमारी मेहनत का प्रतिफल है और इससे आत्मविश्वास दोगुना हुआ है।”

विश्व चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल में चिराग-सात्विक की जोड़ी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए मलेशिया के दिग्गज और दो बार के ओलंपिक पदक विजेता आरोन चिया और सोह वूई यिक को मात दी। यह जीत भारतीय जोड़ी के लिए बेहद खास रही क्योंकि इस मुकाबले को जीतकर उन्होंने न केवल सेमीफाइनल में जगह बनाई, बल्कि अपने नाम दूसरा विश्व चैंपियनशिप पदक भी दर्ज किया।

वर्तमान में विश्व रैंकिंग में नौवें स्थान पर काबिज इस भारतीय जोड़ी ने पिछले कुछ वर्षों में लगातार अपने खेल में सुधार किया है। डबल्स बैडमिंटन में जहां लंबे समय तक भारत को बड़े पदकों के लिए तरसना पड़ा, वहीं चिराग और सात्विक ने इस कमी को पूरा करने का बीड़ा उठाया है।

बैडमिंटन विशेषज्ञों का कहना है कि इस जोड़ी ने साबित किया है कि धैर्य, तालमेल और रणनीति के दम पर भारतीय खिलाड़ी विश्व स्तरीय दिग्गजों को चुनौती दे सकते हैं। उनकी सफलता भारतीय बैडमिंटन के उभरते भविष्य की तस्वीर भी पेश करती है।

सात्विक ने भी पदक जीतने के बाद कहा कि उनकी यह उपलब्धि आने वाले टूर्नामेंट्स के लिए प्रेरणा का काम करेगी। “हमने अपनी गलतियों से सीखा है और अब हमारा फोकस आने वाले एशियाई खेल और अगले ओलंपिक पर है। यह पदक हमारी मेहनत को और बढ़ाने की प्रेरणा है।”

भारतीय बैडमिंटन संघ ने भी इस उपलब्धि की सराहना की और खिलाड़ियों को बधाई दी। संघ ने उम्मीद जताई है कि आने वाले महीनों में यह जोड़ी और बड़े खिताब अपने नाम करेगी।

कुल मिलाकर, चिराग शेट्टी और सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी की यह जीत भारतीय बैडमिंटन इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ती है। यह पदक न केवल उनकी मेहनत की पहचान है, बल्कि भारत के उभरते खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा भी है कि लगातार प्रयास से किसी भी मंजिल को हासिल किया जा सकता है।