उज्जैन में क्यों निकाली जाती है महाकाल की सवारी? जानें इस दिव्य परंपरा का धार्मिक महत्व और पौराणिक रहस्य
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल है। यह मंदिर उज्जैन में स्थित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, महाकालेश्वर स्वयं ज्योति रूप में स्थापित हैं। वैसे तो मंदिर (mahakaleshwar temple) में हर दिन भक्तों की भीड़ देखी जाती है, लेकिन सावन के महीने में महाकालेश्वर के दर्शन के लिए दूर-दूर से अधिक भक्त आते हैं। हर साल सावन (Mahakal Sawan 2025) और भाद्रपद माह में महाकाल की शोभायात्रा निकाली जाती है। इसे बाबा महाकाल की शोभायात्रा के नाम से जाना जाता है। यह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और अधिक संख्या में श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं। ऐसे में आइए इस लेख में जानते हैं कि महाकाल की शोभायात्रा कब निकाली जाएगी और इसके धार्मिक महत्व के बारे में।
महाकाल की शोभायात्रा का इतिहास
सावन और भाद्रपद माह में महाकाल की एक विशेष शोभायात्रा निकलती है। आज भी इस प्राचीन परंपरा का विधिपूर्वक निर्वहन किया जाता है। इस शोभायात्रा की शुरुआत राजा भोज ने बड़े पैमाने पर की थी। इस दौरान महाकाल की शोभायात्रा में नए रथ और हाथी शामिल किए गए थे।
महाकाल की शोभायात्रा कब निकलेगी?
पहली शोभायात्रा - 14 जुलाई
दूसरी शोभायात्रा - 21 जुलाई
तीसरी शोभायात्रा - 28 जुलाई
चौथी शोभायात्रा - 4 अगस्त
पाँचवीं शोभायात्रा - 11 अगस्त
छठी शोभायात्रा - 18 अगस्त
महाकाल की शोभायात्रा का धार्मिक महत्व
महाकाल की शोभायात्रा का विशेष महत्व है। महाकाल को रथ पर बिठाकर नगर भ्रमण कराया जाता है। इस शोभायात्रा के दौरान भक्त महाकाल की स्तुति में जयकारे लगाते हैं। ढोल-नगाड़े बजाए जाते हैं। भक्त इस उत्सव में शामिल होने के लिए बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं। तलवारबाज और घुड़सवार भी शोभायात्रा में भाग लेते हैं। यह शोभायात्रा महाकाल की शक्ति और महिमा का प्रतीक मानी जाती है। महाकाल की शोभायात्रा का वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है।