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खाटू श्याम जी का मंदिर किसने बनवाया? वीडियो में जानिए बर्बरीक के शीश से लेकर 'हारे के सहारे' तक की पूरी रहस्यमयी यात्रा

 

राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम जी का मंदिर आज केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था, भक्ति और चमत्कारिक अनुभवों का जीवंत प्रतीक बन चुका है। भक्तों की मानें तो यह मंदिर वह स्थान है, जहाँ निराश व्यक्ति को आशा, और हारने वाले को विजय की अनुभूति मिलती है। इसलिए इसे ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है।लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह मंदिर किसने बनवाया था? किस कहानी और इतिहास के आधार पर खाटू की भूमि पर इस दिव्य मंदिर की स्थापना हुई? आइए इस पौराणिक कथा, इतिहास और आस्था के केंद्र को विस्तार से समझते हैं।

<a href=https://youtube.com/embed/bT30sShYbPc?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/bT30sShYbPc/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" style="border: 0px; overflow: hidden"" title="Khatu Shyam Mandir | खाटू श्याम मंदिर का पवित्र इतिहास, दर्शन, कैसे जाएँ, कथा, मान्यता और लक्खी मेला" width="695">

बर्बरीक: महाभारत का वो योद्धा जो बना खाटू श्याम बाबा
इस कथा की शुरुआत होती है महाभारत काल से, जहाँ एक महायोद्धा का जन्म होता है — बर्बरीक। बर्बरीक भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे। उन्हें भगवान शिव और अन्य देवों से दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्राप्त हुए थे। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि उनके पास तीन ऐसे अमोघ बाण थे, जिनसे वे पूरी महाभारत की लड़ाई को अकेले ही समाप्त कर सकते थे।जब महाभारत का युद्ध आरंभ होने वाला था, तो बर्बरीक भी युद्धभूमि की ओर बढ़े। परंतु श्रीकृष्ण को ज्ञात था कि बर्बरीक का दृष्टिकोण केवल ‘जो पक्ष कमजोर होगा उसी की सहायता करूँगा’ था। ऐसे में अगर वे युद्ध में उतरते, तो युद्ध कभी समाप्त नहीं होता।

इसलिए श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण वेश में आकर बर्बरीक से उनकी युद्ध-नीति और शक्ति के बारे में जानकारी ली और अंत में उनसे उनका सिर दान में माँग लिया। बर्बरीक ने प्रसन्नता पूर्वक अपना शीश अर्पित कर दिया। श्रीकृष्ण ने उन्हें वचन दिया कि कलियुग में वे उनके ही नाम ‘श्याम’ से पूजे जाएंगे और उन्हें ‘हारे का सहारा’ कहा जाएगा।

शीश का विसर्जन नहीं, हुआ था स्थापना के लिए सुरक्षित
बर्बरीक का कटा हुआ सिर युद्ध समाप्त होने तक एक ऊँचे स्थान से युद्ध देखता रहा। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने उस शीश को वरदान के साथ पवित्र स्थान पर स्थापित करने का निर्देश दिया था। यही सिर बाद में राजस्थान के खाटू गाँव में भूमि के नीचे छिपा रहा।कई शताब्दियों तक यह सिर जमीन के अंदर ही रहा — अज्ञात, लेकिन चमत्कारी।

खाटू श्याम मंदिर का इतिहास: राजा रूप सिंह और रानी नैणसी की भूमिका
अब प्रश्न आता है — किसने बनवाया खाटू श्याम जी का मंदिर?

इस प्रश्न का उत्तर इतिहास के पन्नों में दर्ज एक चमत्कारी घटना से जुड़ा है। कहा जाता है कि 11वीं शताब्दी में, खाटू गांव के एक राजा 'रूप सिंह चौहान' और उनकी रानी 'नैणसी देवी' को स्वप्न में एक दिव्य दर्शन हुआ। सपना बहुत ही स्पष्ट और रहस्यमयी था — एक स्थान पर खुदाई करने को कहा गया था, जहाँ उन्हें बर्बरीक का शीश मिलने वाला था।राजा ने अगले ही दिन उस स्थान की खुदाई करवाई और सचमुच वहाँ एक दिव्य और तेजस्वी सिर निकला। जैसे ही वह सिर जमीन से बाहर आया, आसपास के वातावरण में दिव्यता और चमत्कारिक ऊर्जा का संचार हो गया।इस घटना से स्तब्ध होकर राजा रूप सिंह ने तुरंत एक प्रारंभिक मंदिर बनवाया, जहाँ बर्बरीक के उस शीश को स्थापित किया गया। यही मंदिर आगे चलकर पूरे भारतवर्ष में खाटू श्याम मंदिर के नाम से विख्यात हुआ।

मंदिर का पुनर्निर्माण: राजा अभयसिंह का योगदान
राजा रूप सिंह द्वारा बनाए गए प्रारंभिक मंदिर की महिमा समय के साथ फैलने लगी। भक्तों की संख्या बढ़ी और मंदिर को और भव्य रूप देने की आवश्यकता महसूस हुई।18वीं सदी में, जयपुर के तत्कालीन राजा अभयसिंह ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। संगमरमर की दीवारों, नक्काशीदार खंभों और विशाल प्रांगण से सुसज्जित यह मंदिर अब एक भव्य तीर्थ स्थल बन चुका था।मंदिर की भव्यता और दिव्यता आज भी देखने योग्य है। मुख्य गर्भगृह में विराजमान खाटू श्याम जी की प्रतिमा उस ही शीश के रूप में है, जिसे हजारों साल पहले बर्बरीक ने श्रीकृष्ण को दान दिया था।

‘हारे का सहारा’ क्यों कहा जाता है खाटू श्याम जी को?
खाटू श्याम जी को ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है क्योंकि मान्यता है कि जिस भक्त ने हार मान ली हो, निराश हो गया हो, वह अगर सच्चे मन से बाबा श्याम को पुकारता है, तो उसे सहायता अवश्य मिलती है।

अनेक श्रद्धालुओं के अनुभवों में यह बात सामने आई है कि खाटू श्याम जी की पूजा करने के बाद:
व्यापार में हानि झेल रहे लोगों को लाभ मिला
नौकरी की तलाश करने वालों को अच्छे अवसर मिले
विवाह योग्य युवाओं के रिश्ते तय हुए
असाध्य रोगों से ग्रसित लोगों को मानसिक शांति और स्वास्थ्य लाभ मिला
इन अनुभवों के कारण बाबा श्याम को हर वर्ग, हर जाति और हर क्षेत्र के लोग पूजते हैं — बिना किसी भेदभाव के।

खाटू श्याम जी का वार्षिक मेला: श्रद्धा का महासंगम
हर साल फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) में खाटू श्याम जी का वार्षिक मेला आयोजित होता है। यह मेला भारत के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक माना जाता है, जहाँ देशभर से लाखों श्रद्धालु पैदल यात्रा करके आते हैं।भक्तजन "जय श्री श्याम", "हारे के सहारे की जय" जैसे जयकारों के साथ बाबा को रिझाते हैं। इस मेले में:
अखंड कीर्तन
निशान यात्रा
रथ सज्जा

छप्पन भोग का आयोजन
आदि होते हैं, जो एक भक्ति से भरा माहौल रचते हैं।
मंदिर की वास्तुकला और विशेषताएँ
खाटू श्याम मंदिर न केवल आध्यात्मिक केंद्र है, बल्कि स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना भी है। मंदिर में:

सफेद संगमरमर का उपयोग हुआ है
छतों और दीवारों पर आकर्षक चित्रकारी की गई है
मुख्य द्वार पर सुंदर नक्काशी और शिलालेख मौजूद हैं
गर्भगृह के चारों ओर विशाल प्रांगण है, जहाँ श्रद्धालु भजन-कीर्तन करते हैं
मंदिर परिसर में एक पवित्र कुंड (श्याम कुंड) भी स्थित है, जहाँ से जुड़ी मान्यता है कि इसी स्थान से बाबा श्याम का शीश निकला था। भक्त इस कुंड में स्नान कर अपनी पीड़ा को दूर मानते हैं।

खाटू श्याम बाबा की महिमा आज के दौर में
आज खाटू श्याम बाबा के मंदिर में सिर्फ भारत से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। खाटू से जुड़े ऑनलाइन दर्शन, वर्चुअल पूजा और लाइव आरती की सुविधा ने देश-दुनिया में बसे भक्तों को एक सूत्र में बाँध दिया है।कोरोना काल में भी खाटू श्याम जी की महिमा पर श्रद्धा कम नहीं हुई, बल्कि ऑनलाइन माध्यम से और तेज़ी से फैली।

निष्कर्ष: आस्था का अद्वितीय केंद्र
खाटू श्याम जी का मंदिर केवल एक स्थापत्य या पौराणिक स्थल नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के जीवन का आध्यात्मिक आधार बन चुका है। जिस स्थान की शुरुआत एक राजा के स्वप्न और जमीन के नीचे छिपे एक शीश से हुई, वह आज विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बन चुका है।‘हारे का सहारा’ सिर्फ एक कहावत नहीं, यह हर उस व्यक्ति की सच्ची पुकार है जिसे दुनिया ने छोड़ दिया हो — और जिसे बाबा श्याम ने थाम लिया हो।