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क्या है गीत गोविन्द? बाबा बागेश्वर और इंद्रेश उपाध्याय जी ने इसे क्यों बताया भगवान कृष्ण का चमत्कारिक भजन ?  जानें वजहें

 

गीत गोविंद 12वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि जयदेव द्वारा रचित एक रचना है। इसमें श्री कृष्ण और राधा रानी के प्रेम का वर्णन है। यह गीत भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम की भावना जागृत करता है। प्रसिद्ध कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय जी के अनुसार, जहाँ भी गीत गोविंद गाया जाता है, ठाकुर जी वहाँ शीघ्र ही पधारते हैं। साथ ही, बाबा बागेश्वर भी कहते हैं कि यह एक ऐसी रचना है कि यदि कोई भक्त चटाई बिछाकर मुक्त कंठ से गीत गोविंद का पाठ करता है, तो ठाकुर जी इस भजन को सुनने अवश्य आते हैं। आइए आपको बताते हैं कि गीत गोविंद इतना प्रसिद्ध क्यों है और इसे गाने के नियम क्या हैं।

गीत गोविंद गाने के नियम
कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय जी ने एक वीडियो में बताया कि प्रतिदिन एक आसन पर बैठकर गीत गोविंद का पाठ करें और जब आप पाठ करें, तो सामने एक खाली आसन बिछा दें। वह आसन ठाकुर जी का होना चाहिए और भावना यह होनी चाहिए कि ठाकुर जी आप इस आसन पर आकर विराजमान हों, हम आपके लिए गीत गोविंद गा रहे हैं। एक महीना, दो महीने, छह महीने, एक साल... आपको लगातार गीत गोविंद का पाठ करते रहना चाहिए। कुछ दिनों बाद आपको ऐसा लगेगा कि बाल गोपाल आपके आसन पर बैठकर यह गीत सुन रहे हैं।

भगवान कृष्ण को गीत गोविंद क्यों प्रिय हैं
गीत गोविंद भगवान कृष्ण को इसलिए प्रिय है क्योंकि इसमें उनके और राधा के प्रेम, विरह और मिलन का सुंदर वर्णन किया गया है। गीत गोविंद में राधा और कृष्ण के प्रेम को न केवल मानवीय प्रेम के रूप में, बल्कि आध्यात्मिक और दिव्य प्रेम के रूप में भी दर्शाया गया है। इसके अलावा, इस रचना में कृष्ण के प्रति भक्तों के प्रेम और समर्पण को भी दर्शाया गया है। कुछ धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जहाँ भी गीत गोविंद का गायन होता है, भगवान कृष्ण स्वयं उसे सुनने आते हैं।

श्रीत कमलकुच (गीत गोविंद) के बोल
श्रितकमलाकुचमण्डल धृतकुण्डल ए।
कलितललितवनमाल जय जय देव हरे॥
दिनमणिमण्डलमण्डन भवखण्डन ए।  
मुनिजनमानसहंस जय जय देव हरे ॥
कालियविषधरगंजन जनरंजन ए।
यदुकुलनलिनदिनेश जय जय देव हरे ॥
मधुमुरनरकविनाशन गरुडासन ए।
सुरकुलकेलिनिदान जय जय देव हरे ॥
अमलकमलदललोचन भवमोचन ए।
त्रिभुवनभवननिधान जय जय देव हरे ॥
जनकसुताकृतभूषण जितदूषण ए।
समरशमितदशकण्ठ जय जय देव हरे ॥
अभिनवजलधरसुन्दर धृतमन्दर ए।
श्रीमुखचन्द्रचकोर जय जय देव हरे ॥
तव चरणे प्रणता वयमिति भावय ए।
कुरु कुशलंव प्रणतेषु जय जय देव हरे ॥
श्रीजयदेवकवेरुदितमिदं कुरुते मृदम् ।
मंगलमंजुलगीतं जय जय देव हरे ॥
राधे कृष्णा हरे गोविंद गोपाला नन्द जू को लाला ।
यशोदा दुलाला जय जय देव हरे ॥

ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने स्वयं गीत गोविंद को पूर्ण किया था

एक पौराणिक कथा के अनुसार, गीत गोविंद के कवि जयदेव एक श्लोक को लेकर भ्रमित थे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अपनी रचना कैसे पूरी करें। तब भगवान कृष्ण ने उनकी अनुपस्थिति में उस श्लोक को पूरा किया।