वायरल डॉक्यूमेंट्री में देखिये जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर की पौराणिक कथा, जानिए कैसे वृंदावन से लाकर स्थापित की गई श्रीकृष्ण की यह जाग्रत मूर्ति
राजस्थान की राजधानी जयपुर सिर्फ अपने किलों, हवेलियों और गुलाबी दीवारों के लिए ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी विश्वविख्यात है। इसी धार्मिक विरासत का गौरवपूर्ण प्रतीक है — गोविंद देव जी मंदिर, जो न केवल जयपुर बल्कि सम्पूर्ण भारत में श्रीकृष्ण भक्तों की आस्था का केंद्र है। यह मंदिर सिटी पैलेस परिसर में स्थित है और इसे 'श्रीकृष्ण जी का जीवंत मंदिर' भी कहा जाता है।
इतिहास: एक भक्त राजा और वृंदावन से जयपुर तक की कथा
गोविंद देव जी की मूर्ति की उत्पत्ति से जुड़ी एक अद्भुत कथा है। ऐसा माना जाता है कि यह मूर्ति स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समय उनके वंशज ब्रजराज महाराज वज्रनाभ ने द्वारका से मथुरा लौटकर बनाई थी। वज्रनाभ ने श्रीकृष्ण के जीवन काल में उन्हें देखा था, और उन्होंने उनकी याद में यह मूर्ति बनवाई थी। यह वही विग्रह है, जिसे बाद में वृंदावन से जयपुर लाया गया।मुगल काल में जब औरंगजेब ने मथुरा-वृंदावन के मंदिरों को नष्ट करना शुरू किया, तब गोविंद देव जी की मूर्ति को बचाने के लिए उसे वहां से हटाया गया। कहा जाता है कि उस समय के जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने इस मूर्ति को सम्मानपूर्वक जयपुर में स्थापित किया और इसके लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर सिटी पैलेस और जनाना महल के बीच इस तरह से बनाया गया कि राजा अपनी रानी के साथ महल से ही प्रभु के दर्शन कर सकें।
वास्तुकला: राजपूताना और मुगल शैली का अनोखा संगम
गोविंद देव जी मंदिर की वास्तुकला में राजपूत और मुगल स्थापत्य कला का अद्वितीय मिश्रण देखने को मिलता है। मंदिर लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित है। इसके गुंबद, नक्काशीदार खंभे और सुंदर तोरण द्वार इसे खास बनाते हैं। गर्भगृह में गोविंद देव जी की भव्य प्रतिमा स्थित है, जो देखने में अत्यंत जीवंत और आकर्षक लगती है।मंदिर परिसर काफी विस्तृत है और इसमें हर दिन हजारों श्रद्धालु एक साथ दर्शन करते हैं। भव्य आरती मंडप, जल कूप, भजन संध्या स्थल और श्रृंगार गृह इसकी भव्यता में चार चाँद लगाते हैं।
मान्यता और धार्मिक महत्व
भक्तों का मानना है कि गोविंद देव जी की मूर्ति कोई साधारण प्रतिमा नहीं है, बल्कि यह श्रीकृष्ण का स्वयंभू विग्रह है, जिसमें भगवान का वास्तविक स्वरूप समाहित है। यहां दर्शन करने मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में शांति व समृद्धि आती है।गोविंद देव जी को विशेष रूप से नवविवाहित जोड़े, संतान की कामना रखने वाले और करियर या व्यापार में सफलता चाहने वाले श्रद्धालु बड़े भक्ति भाव से पूजते हैं। यह मंदिर श्रीकृष्ण के 'माधुर्य' रूप की भक्ति का प्रमुख केंद्र माना जाता है।
दर्शन और पूजा व्यवस्था
मंदिर में प्रतिदिन सात बार दर्शन होते हैं जिन्हें "झांकी" कहा जाता है — मंगला, श्रंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्तपन, संध्या और शयन। हर झांकी के समय गोविंद देव जी को अलग-अलग श्रृंगार में सजाया जाता है और भक्तों को उनसे मिलने का अनुभव होता है मानो भगवान साक्षात उपस्थित हों।विशेष अवसरों पर जैसे जन्माष्टमी, राधाष्टमी, फूलों की होली, अन्नकूट और झूलन उत्सव के दौरान मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इन दिनों मंदिर प्रांगण जीवंत हो उठता है और भजन-कीर्तन से सारा वातावरण भक्तिमय बन जाता है।
पौराणिक कथा और भक्त भाव
गोविंद देव जी की मूर्ति से जुड़ी एक पुरानी मान्यता के अनुसार, जब यह प्रतिमा पहली बार बनाई गई थी, तब वज्रनाभ जी ने श्रीकृष्ण की पोती से पूछा कि यह प्रतिमा कितनी मिलती-जुलती है। उन्होंने कहा कि यह मूर्ति भगवान के चरणों से मेल खाती है। तब दूसरी प्रतिमा बनाई गई, वह छाती से मिलती थी। और तीसरी प्रतिमा — जो वर्तमान में गोविंद देव जी के नाम से प्रतिष्ठित है — उनके चेहरे से हूबहू मेल खाती थी। इसलिए इसे श्रीकृष्ण का ‘मुखारविंद स्वरूप’ माना गया।भक्त इस प्रतिमा के दर्शन को जीवित कृष्ण दर्शन के रूप में अनुभव करते हैं। इसे ‘जाग्रत मूर्ति’ माना जाता है, यानी यह मूर्ति भक्तों के भावों को तुरंत ग्रहण करती है और प्रतिक्रिया देती है।
आध्यात्मिक ऊर्जा और सांस्कृतिक केंद्र
जयपुर आने वाला हर श्रद्धालु गोविंद देव जी के दर्शन के लिए अवश्य आता है। यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक संस्कृति, परंपरा और आस्था का संगम है, जहाँ हर जाति-धर्म का व्यक्ति सच्चे मन से दर्शन करता है। यहां न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत और विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं।