सावन में शिव की विशेष कृपा पाने का अचूक उपाय, इस पौराणिक वीडियो में जानिए श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र का रहस्य और महत्व
सावन का महीना भगवान शिव की आराधना का सबसे शुभ समय माना जाता है। यह पावन महीना श्रद्धा, भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। सावन के प्रत्येक दिन विशेष रूप से सोमवार को शिवलिंग पर जलाभिषेक, रुद्राभिषेक और शिव मंत्रों का जाप करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसी क्रम में एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है ‘श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्रम्’ (Shiva Panchakshar Stotra), जो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत शक्तिशाली और फलदायी माना गया है।
श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र: क्या है इसका महत्व?
‘शिव पंचाक्षर स्तोत्र’ का अर्थ है पाँच अक्षरों वाला स्तोत्र, जिसमें 'न', 'म', 'शि', 'वा', 'य'—इन पंचाक्षरों के आधार पर भगवान शिव की स्तुति की जाती है। यह स्तोत्र आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित है और इसमें भगवान शंकर के स्वरूप, उनकी दिव्यता और उनके प्रति समर्पण का भाव प्रकट किया गया है।इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं, चित्त शांत होता है, और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। खासतौर पर सावन माह में इसका पाठ करने से भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्रम् (श्लोक सहित अर्थ)
1. नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै न काराय नमः शिवाय॥
भावार्थ: जिनके गले में नाग का हार है, जो तीन नेत्रों वाले हैं, जिनका शरीर भस्म से रमा हुआ है, जो दिगम्बर हैं (वस्त्ररहित और अंतर से पूर्ण पवित्र), उन 'न' अक्षर स्वरूप शिव को नमस्कार है।
2. मन्दाकिनी सलिलचन्दनचर्चिताय, नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय, तस्मै म काराय नमः शिवाय॥
भावार्थ: जो मंदाकिनी के जल और चंदन से अभिषिक्त हैं, जिनकी नंदीश्वर आदि गणों द्वारा पूजा होती है, जो मन्दार पुष्पों से पूजित हैं—उन 'म' अक्षर स्वरूप शिव को प्रणाम है।
3. शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द, सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शि काराय नमः शिवाय॥
भावार्थ: जो शिव हैं, गौरी के मुखकमल को प्रसन्न करने वाले हैं, जिन्होंने दक्ष का यज्ञ नष्ट किया, जो नीलकंठ और वृषभ ध्वजधारी हैं—उन 'शि' अक्षर स्वरूप शिव को नमस्कार है।
4. वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य, मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय, तस्मै व काराय नमः शिवाय॥
भावार्थ: जिनकी पूजा वसिष्ठ, अग्नि से उत्पन्न हुए ऋषि, गौतम मुनि और देवगण करते हैं, जिनकी आँखों में चंद्रमा, सूर्य और अग्नि विराजमान हैं—उन 'व' अक्षर स्वरूप शिव को प्रणाम है।
5. यज्ञस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै य काराय नमः शिवाय॥
भावार्थ: जो यज्ञस्वरूप, जटाजुटाधारी, त्रिशूलधारी, सनातन, दिव्य और दिगम्बर हैं—उन 'य' अक्षर स्वरूप शिव को नमस्कार है।
समापन श्लोक
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
भावार्थ: जो भक्त इस पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ शिवजी के समीप बैठकर करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और शिव के साथ आनन्दित होता है।
सावन में इसका पाठ क्यों करें?
सावन का महीना शिव आराधना का सबसे पवित्र काल माना गया है। इस दौरान शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करने से—
मन को शांति मिलती है
कर्मों का शुद्धिकरण होता है
गृहदोष, कालसर्प दोष और शनि पीड़ा से राहत मिलती है
सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है
और सबसे बढ़कर, भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है