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जाने आरती करने का महत्व और नियम

 
आप सभी ने देखा होगा कि अधिकतर लोग आरती को सुनकर मंदिर के सामने खङे  हो जाते है और ईश्वर का ध्यान करके उनकी भक्ति में डूब जाते हैं।यहां तक कि हमारी आंखें खुद ही झुक जाती है।हिन्दु धर्म में आरती को नीरज अन भी कहते हैं,नीरज का मतलब विशेष रूप से प्रकाशित करना यानि कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर व्यक्तित्व को उज्जवल कर दे।
आरती करने से पूर्ण होती है ईश्वर की पूजा

स्कन्द पुराण में भगवान की आरती के बारें में लिखा गया है कि यदि किसी व्यक्ति को मंत्र नहीं आता और पूजा करने की विधि भी नहीं आती , तो उसके द्वारा श्रध्दापूर्वक की गई आरती को भी प्रभु उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं। इसका मुख्य कारण ये  कि भगवान तो सिरफ भाव के भूखे होते हैं।यदि किसी के पास भगवान को चढाने के लिए कुछ भी नहे होता और सच्चे मन से अपने ईश्वर को याद कर लेता है तो भी भगवान उस मनुष्य की पूजा को स्वीकार कर लेते हैं।

आरती करने के विशेष नियम

ऐसा कहते हॆं कि मात्र आरती करने से ही नहीं बल्कि आरती देखने से भी बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है। पद्मपुराण के अनुसार रोली कपूर और चंदन की पांच या सात बत्तियां बनाकर या रुई और घी में बत्तियां बनाकर शंख, घंटी आदि बजाते हुए प्रभु की आरती करनी चाहिए। यह आरती दिन में 1 से 5 बार की जा सकती है।आमतौरपर ज्यादातर घरों में सुबह और शाम को ही आरती की जाती है।

आरती का धार्मिक महत्व

पुरानी  मान्यताओं के अनुसार आरती ऊंचे स्वर व एक ही लय ताल में गाई जाती है, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय, संगीतमय हो जाता है। यह माहौल हर स्थिति में मन को सुकून देने वाला होता है। अलग-अलग देवी-देवताओं की स्तुति करने के लिए अलग-अलग वाद्ययंत्रों को बजाकर गायन करने से देवी-देवता शीध्र प्रसन्न हो जाते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार आरती करने वाले व्यक्ति पर ईश्वर की सदैव कृपा बनी रहती है।