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स्वास्तिक में बनती है श्री गणेश की छवि, जानिए महत्व

 

हिंदू धर्म में पूजा पाठ और चिन्हों और प्रतीको का विशेष महत्व बताया गया हैं मंगल और शुभ कार्यों के लिए स्वास्तिक बनाने का भी महत्व होता हैं कथा, पूजन, हवन, शादी विवाह, यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों त्योहारों में स्वास्तिक बनाए जाने की विशेष पंरपरा भी होती हैं ऐसे में आज हम आपको स्वास्तिक से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बताने बताने जा रहे हैं इसके साथ ही हम आपको इसके अर्थ महत्व के बारे में भी बताएंगे। तो आइए जानते हैं स्वास्तिक का वास्तविक महत्व क्या हैं।

बता दें स्वास्तिक शब्द मूलभूत से ‘सु+अस’ धातु से बना हैं सु का मतलब कल्याणकारी और मंगलमय होता हैं अस का अर्थ अस्तित्व और संत्ता से जुड़ा माना जाता हैं इस तरह स्वास्तिक का मतलब हुआ ऐसा अस्तित्व, जो शुभ भावना से भरा और कल्याणकारी हो। जहां अशुभता, अमंगल और अनिष्ट का लेश मात्र भय न हो। साथ ही सत्ता, जहां केवल कल्याण और मंगल की भावना ही निहित हो और सभी के लिए शुभ भावना ​सन्निहित हो इसलिए स्वास्तिक को कल्याण की सत्ता और उसके प्रतीक के रूप में जाना जाता हैं। विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा की भी स्वास्तिक चिन्ह से संगति हैं श्री गणेश जी के सूंड हाथ, पैर, सिर आदि अंग इस तरह से चित्रित होते हैं कि यह स्वास्तिक की चार भुजाओं के रूप में प्रतीत होते हैं। वही ‘ॐ’ को भी स्वास्तिक का प्रतीक माना गया हैं। यह प्रतीक सृष्टि के सृजन का मूल हैं। ‘ॐ’ में शक्ति, सामर्थ्य और प्राण सन्निहित हैं। ईश्वर के नामों में सर्वोपरि मान्यता इसी अक्षर की हैं।

हिंदू धर्म में पूजा पाठ, चिन्हों और प्रतीको का विशेष महत्व बताया गया हैं मंगल और शुभ कार्यों के लिए स्वास्तिक बनाने का भी महत्व होता हैं कथा, पूजन, हवन, शादी विवाह, यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों त्योहारों में स्वास्तिक बनाए जाने की विशेष पंरपरा होती हैं, स्वास्तिक में भगवान श्रीगणेश की छवि निहित होती हैं। स्वास्तिक में बनती है श्री गणेश की छवि, जानिए महत्व